आजीवन सेवा का संकल्प
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसेडोनिया गणराज्य के स्काप्जे में सुन्दर बेटी अगनेस गोंझा बोयाजिजू के रूप में हुआ था। अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है। जब वह मात्र आठ साल की थीं तभी इनके पिता का निधन हो गया, जिसके बाद इनके लालन-पालन की सारी जिम्मेदारी इनकी माता द्राना बोयाजिजू के ऊपर आ गयी। यह भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। इनके जन्म के समय इनकी बड़ी बहन की उम्र 7 साल और भाई की उम्र 2 साल थी।
वह एक सुन्दर, अध्ययनशील एवं परिश्रमी लड़की थीं। पढ़ाई के साथ-साथ, गाना इन्हें बेहद पसंद था। यह और इनकी बहन पास के गिरजाघर में मुख्य गायिकाएँ थीं। अगनेस उर्फ मदर टेरेसा ने 12 साल की कम उम्र में अपने जीवन को समाज सेवा के कार्यों में समर्पित करने का फैसला कर लिया था। टेरेसा ने 18 साल की उम्र में ही स्काप्जे (अपने माता-पिता का घर) को छोड़ दिया था। वह आयरिश समुदाय में नन के रूप में शामिल हो गईं थी। यह समुदाय सिस्टर्स आफ लारेटो के नाम से पूरे भारत में शिक्षा का कार्य करता था। लारेटो की सिस्टर्स अंग्रेजी माध्यम से बच्चों को भारत में पढ़ाती थी इसलिए सिस्टर टेरेसा ने अंग्रेजी सीखी। टेरेसा भारत आकर रहने लगीं जहाँ उन्होंने अपने जीवन का सबसे अधिक समय बिताया। टेरेसा ने स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी।
टेरेसा ने लिखा है, मेरी अन्तरात्मा से आवाज उठी थी कि मुझे अपना जीवन ईश्वर स्वरूप दरिद्र नारायण की सेवा के लिए समर्पित कर देना चाहिए। उन्होंने अपना नाम बदलकर टेरेसा रख लिया और उन्होंने आजीवन सेवा का संकल्प अपना लिया। 1931 में अगनेस ने सिस्टर टेरेसा के रूप में अपनी प्रतिज्ञाएं लीं। वर्ष 1931 से 1948 तक सिस्टर टेरेसा ने शिक्षण क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण सेवायें दी। टेरेसा ने दार्जिलिंग के सेंट टेरेसा स्कूल में शिक्षण कार्य किया।
1948 में, मदर टेरेसा ने पश्चिम बंगाल, कलकत्ता (कोलकाता) के झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीबों में से सबसे गरीब लोगों की सेवा करना शुरू कर दिया था। बाद में, इन्होंने झुग्गी में रहने वाले बच्चों के लिए ओपन-एयर स्कूल का संचालन किया और अंततः वेलीन्टर से अनुमति प्राप्त करने के बाद “मिशनरी आॅफ चैरिटी समूह” की स्थापना की। इस समूह का उद्देश्य शराबियों, एड्स पीड़ितों, भूखे, नंगे, बेघर, अपंग, अंधे, कुष्ठरोग से पीड़ित आदि सभी विभिन्न धर्मों के लोगों जिन्हें सहायता की आवश्यकता थी, उन बेसहारों को मानवता के नाते सहायता प्रदान करना था। मिशनरी आफ चैरिटी शुरू में कलकत्ता में सिर्फ 13 सदस्यों का समूह था और वर्ष 1997 तक 4000 से ज्यादा नन इसमें शामिल हो गई, जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों में शराबियों, एड्स पीड़ित अनाथाश्रम और चैरिटी केंद्र को चलाने में पूरे समर्पण और जी-जान से आज भी लगी हंै।
मदर टेरेसा पीड़ितों की सेवा में किसी प्रकार की पक्षपाती नहीं थी। उन्होंने सद्भाव बढ़ाने के लिए संसार का दौरा किया है। उनकी मान्यता है कि 'प्यार की भूख रोटी की भूख से कहीं बड़ी है।' उनके मिशन से प्रेरणा लेकर संसार के विभिन्न भागों से स्वयं सेवक भारत आये और तन, मन, धन से गरीबों की सेवा में लग गये। मदर टेरेसा का कहना है कि सेवा के कार्य में पूर्ण समर्पण की आवश्यकता होती है। वही लोग इस कार्य को प्रसन्नतापूर्वक कर सकते हैं जो प्यार एवं सांत्वना की वर्षा करें, भूखों को खिलायें, बेघर वालों को शरण दें, दम तोड़ने वाले बेबसों को प्यार से सहलायें, अपाहिजों को हर समय हृदय से लगाने के लिए तैयार रहें।
चाहे परित्यक्त बच्चे हों, मरते हुए या कुष्ठ रोगी हों, मदर टेरेसा ने सबको भगवान के बच्चों के रूप में देखा और उनकी देखभाल की। उन्होंने लोगों को प्रेरित किया कि वे सेवा के इस पुनीत कार्य में पैसा, मकान, दवाइयां और दूसरी जरूरत की चीजें दान करने के लिए आगे आएं। लगभग दस वर्षों में मिशनरीज आॅफ चैरिटी ने भारत में कई जगह होम्स खोले। दान इकट्ठा करने के लिए दूसरे देशों का दौरा भी किया। उन्होंने मेन्स विंग की स्थापना भी की, जिसे मिशनरीज ब्रदर्स आॅफ चैरिटी नाम दिया गया। ब्रदर्स उन क्षेत्रों में काम करते थे, जहां सिस्टर्स प्रवेश नहीं कर सकती थी।
पोप ने 1965 में मिशनरी आॅफ चैरिटी को भारत के बाहर कार्य करने की इजाजत दे दी। मदर टेरेसा ने उत्तरी-दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और यूरोप में लोगों की सेवा करना शुरू कर दिया। 1970 तक वे गरीबों और असहायों के लिए अपने मानवीय कार्यों के लिए प्रसिद्ध हो गयीं। मदर टेरेसा के जीवनकाल में मिशनरीज आफ चैरिटी का कार्य लगातार विस्तृत होता रहा और उनकी मृत्यु के समय तक यह 123 देशों में 610 शाखायें नियंत्रित कर रही थीं।
दीन-दुखियों की बिना भेदभाव की सेवा के लिए मदर टेरेसा को राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर मिले अनेक सम्मान इस प्रकार हैं:- (1) 1962 में मदर टेरेसा को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। (2) 1969 में, मदर टेरेसा को अंतर्राष्ट्रीय समझ के लिए जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। (3) 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। (4) 1980 में, भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारत रत्न पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। इन पुरस्कारों के अतिरिक्त मदर टेरेसा को टेंपलटन, रमन मैगसेसे पुरस्कार और अंतर्राष्ट्रीय समझ एवं पोप जान 23वें शांति पुरस्कार 1971 के लिए भी पुरस्कार मिले हैं। विश्व भारती विद्यालय ने उन्हें देशिकोत्तम पदवी दी जो कि उसकी ओर से दी जाने वाली सर्वोच्च पदवी है। अमेरिका के कैथोलिक विश्वविद्यालय ने उन्हंे डाक्टेरेट की उपाधि से विभूषित किया। 1988 में ब्रिटेन द्वारा 'आर्डर आॅफ द ब्रिटिश इम्पायर' की उपाधि प्रदान की गयी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने उन्हें डी-लिट की उपाधि से विभूषित किया। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति केनेडी ने उन्हें जोजेफ पी. केनेडी फाउंडेशन अवार्ड से सम्मानित किया।
नीली बाॅर्डर वाली काॅटन की सफेद साड़ी पहनने वाली संसार की इस करूणामयी माँ मदर टेरेसा का देहान्त 5 सितम्बर 1997 को हो गया। दया तथा ममता की इस माँ ने अपने सेवामय जीवन द्वारा सारी मानव जाति को सन्देश दिया कि संसार की सबसे बड़ी पूँजी मानवता है। मानव मात्र की सेवा के रूप में इसे व्यापक आकार देना चाहिए। मनुष्य के प्रत्येक सेवा कार्य ईश्वर की सुंदर प्रार्थना बने। मदर टेरेसा संसार के लिए सच्चे प्रेम और सेवा की विरासत छोड़ गईं।
मदर टेरेसा के देहान्त के उपरान्त 4 सितंबर, 2016 को वेटिकन सिटी के सेंट पीटर स्क्वायर में पोप फ्रांसिस द्वारा मदर टेरेसा को संत की उपाधि प्रदान की गई थी। मदर टेरेसा के संत की उपाधि समारोह को वेटिकन टेलीविजन चैनल पर लाइव प्रसारण किया गया था और इंटरनेट पर भी दिया गया था। मदर टेरेसा के संत की उपाधि के विशेष सार्वजनिक जश्न को कोलकाता और भारत के मिशनरी आफ चैरिटी के अलावा, इनके गृहनगर स्कोप्जे में भी 7 दिवसीय लंबे उत्सव के रूप में मनाया गया था।
मदर टेरेसा 6 अनमोल विचार इस प्रकार हैं - (1) छोटी-छोटी बातों में विश्वास रखें क्योंकि इनमें ही आपकी शक्ति निहित है। यही आपको आगे ले जाती है। (2) यदि हमारे मन में शांति नहीं है तो इसकी वजह है कि हम यह भूल चुके हैं कि हम एक-दूसरे के लिए हैं। (3) मैं चाहती हूं कि आप अपने पड़ोसी के बारे में चिंतित हों, क्या आप जानते हैं कि आपका पड़ोसी कौन है? (4) भगवान यह अपेक्षा नहीं करते कि हम सफल हों, वे तो केवल इतना चाहते हैं कि हम प्रयास करें। (5) कल तो चला गया, आने वाला कल अभी आया नहीं, हमारे पास केवल आज है, आइए, अच्छे कार्य की वर्तमान के इस क्षण से शुरूआत करें। (6) हम कभी नहीं जान पाएंगे कि एक छोटी-सी मुस्कान कितना भला कर सकती है और कितनों को खुशी दे सकती है।