प्रकृति ईश्वर का दिया हुआ वरदान है

- युवामित्र

प्रत्येक प्राणी के हित में प्रकृति का परिचारिका रूप वस्तुतः ईश्वर की करुणा-अनुग्रह का ही रूप है ! प्रतिपल सौन्दर्य-माधुर्य युक्त प्रकृति सर्वथा निर्दोष एवं ईश्वरीय विधान की  साकारता है ! अतः प्रकृति के प्रति एकात्मता और आदरभाव रखें ..! इस धरती पर जीवन प्रकृति के कारण ही संभव है। ब्रह्माण्ड में पृथ्वी के अलावा और भी कई ग्रह हैं लेकिन इस प्रकृति के बिना वहां जीवन संभव नहीं है। पृथ्वी पर सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए भगवान ने हमें सबसे अनमोल और कीमती उपहार प्रकृति के रूप में हमें प्रदान किया है। प्रकृति क्या है? हम अपने आस-पास जितने भी बाग-बगीचे, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, नदी-समुद्र, जो कुछ भी दृश्यमान है विशाल पेड़ों के हरे भरे वन, रेतीले रेगिस्तान, कहीं पर बहती हुई चंचल नदियाँ, तो कहीं पर समुद्र की लहरें हैं, धरती पर हिमालय पर्वत जैसी विशाल और लम्बी-लम्बी पर्वत मालायें भी है जो प्रकृति का विशाल स्वरुप दिखाती है, यही हमारी प्रकृति है। जिसका दृश्य देखने मात्र से ही मनुष्य के दिन भर की सारी थकानें दूर हो जाती है। हम सभी के लिए प्रकृति ईश्वर का दिया हुआ वरदान है। हम ब्रह्माण्ड के सबसे सुंदरतम ग्रह पर निवास करते हैं। जिसे हम अनेक नामों से पुकारते हैं। जैसे कि पृथ्वी, धरा, धरती आदि। हमारी इस धरती की सुंदरता 'प्रकृति' की वजह से है। जैसे एक बच्चा जन्म लेता और अपनी माँ की गोद और उसके आँचल के साये में पलकर बड़ा होता है वैसे ही मानव भी इस धरती पर 'प्रकृति' की गोद में और उसके आँचल के साये में पलकर बड़ा होता है, इस कारण 'प्रकृति' हमारे लिये 'माँ' ही है। प्रकृति निःस्वार्थ भाव से हमें अपना सबकुछ दे देती है। ये अपने सुनहरे आँचल से ढक कर रखती है हमें और खुशबू की तरह प्रकृति शुद्ध हवा देती है, भूगर्भ जल से हमारी प्यास बुझाती है, प्रकृति और सावन की घटाओं से रिमझिम बरसती है - प्रकृति। बंजर खेतों में हरियाली की बयार लाती है - प्रकृति। गमलों में भी गुलाब महकाती है - प्रकृति। हरपल, हर क्षण हमें प्राणवायु देकर सदा ही हमारा जीवन बचाए रखती है - प्रकृति। सब कुछ 'प्रकृति' हमें बिना किसी भेद-भाव के अपने सारे संसाधन उपलब्ध कराती है। प्रकृति एक 'माँ' की तरह हमारा लालन-पालन करती है। जैसे कोई 'माँ' अपने बच्चों में कोई भेद नही करती, वैसे ही 'प्रकृति' भी अपने संसाधन हमें देने में कोई भेद नही करती है। प्रकृति हमें वो सब देती है जो एक 'माँ' अपने बच्चे को देती है। 'माँ' बिना किसी स्वार्थ के अपने बच्चे पर अपना सब कुछ न्योछावर कर देती है और बदले में कुछ भी नही मांगती। बस ये आशा करती है कि बच्चा समझदार होने पर उसका ध्यान रखे ...।




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