अनोखा जाल
1963 के दिसम्बर के आखिरी सप्ताह में मुझे सी.बी.सी.आई.डी. द्वारा लखीमपुर के एक अहम और पेचीदे मर्डर केस की तफतीश की जांच सौंपी गई जिसे सिविल पुलिस दो साल की कड़ी मशक्कत के बाद भी नही सुलझा पाई थी। मैने घर आकर पत्नी से सफर का सामान पैक कराया और दूसरे दिन सीतापुर को रवाना हुआ जो लखनऊ से 80 किलोमीटर दूर था जब मैं लखीमपुर पहुँचा तो दोपहर के लगभग 11 बज रहे थे मैंने हेडक्वाटर पहुँच कर रिपोर्ट की और वहाँ से दो सिपाही साथ लेकर सीतापुर की सीमा से लगी हरगांव पुलिस चैकी पहुँचा और मैंने केस फाइल और अन्य जरूरी सबूत और जानकारियां हासिल कीं। एफ आई.आर. के अनुसार 27 फरवरी 1963 की सुबह हरगांव पुलिस चैकी मे एक राहगीर रमाशंकर ने सूचना दी कि लखीमपुर-सीतापुर राजमार्ग में बांये हाथ की झाड़ियों में एक युवक की लाश पड़ी है लाश देखकर वह बुरी तरह घबरा गया और भागा-भागा सूचना देने चला आया तत्कालीन स्टेशन अफसर मंजूर आलम रिपोर्ट दर्ज करके मौकाये वारदात पर पहुँचे वहाँ झाड़ियों के बीच एक 35-36 साल के मध्यम कद के गठीले बदन के सांवले युवक की लाश पड़ी थी जिसने फुलपैंट, कमीज, जूते और पूरी बांह का स्वेटर पहना हुआ था उसकी पीठ पर चाकू जैसी किसी नुकीली चीज के घाव थे मृतक की बांयी आंख के नीचें चोट का पुराना निशान था दंाये माथे, गर्दन व काले तिल थे मृतक के हाथ में एक क्षतिग्रस्त घड़ी थी जो 9.50 का समय बता रही थी जेब से पन्द्रह रूपये, एक चारमीनार सिगरेट का पैकेट जिसमे तीन सिगरेटें कम थीं और एक रसीद निकली जो किसी परचून की दुकान की थी इससे साफ था कि हत्या लूटपाट के ईरादे से नही की गई थी आसपास की झाड़ियों व जमीन पर खून के घब्बे या किसी संघर्ष के निशान देही थेे जाहिर था कि हत्या कहीं और की गई थी फिर लाश लाकर यहां फेंक दी गई है पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से पता चलता था कि हत्या दो दिन पहले 26 फरवरी की रात दस बजे के करीब की गई थी मौत का कारण अत्याधिक रक्तस्त्राव बताया गया था मृतक की शिनाख्त बड़ी मुशकिल और रहस्यमय तरीके से हुयी थी जो खुद एक पहेली बन गई थी लाश मिलने के तीन चार दिन तक ना कोई उसकी शिनाख्त करने आया ना किसी ने किसी पुलिस स्टेशन में गुुमशुदगी की कोई रिपोर्ट लिखाई एक किशोर जरूर लापता हुआ था जो तीसरे दिन ही लौट आया था पोस्टमार्टम के तीसरे दिन इलाहीखेड़ा गांव से एक वृद्ध दो युवकों के साथ जिनमे एक उसका छोटा दामाद मनमोहन और दूसरा बड़ा बेटा रामनरेश था लाश देखने आया और लाश देखकर दहाड़ें मार कर रोने लगा उसने बताया कि यह उसका मंझला बेटा राकेश है। जो चार दिन पहले 27 फरवरी की शाम को घर से बिना बताये निकला था तब से लापता था पहले हम उसे उसके दोस्तों व संबधियों में ढूंढते रहे फिर किसी से लावारिश लाश मिलने की सूचना पाकर शिनाख्त करने चले आये उसने अपना नाम राम औतार और पेशा खेती बताया उसने लाश के कपड़े, घड़ी व अंय सामान को भी मृतक का ही बताया यद्यपि कुछ अजीब बातों को देखकर इन्कवारी अफसर को कुछ संदेह पैदा हुआ पर कोई दूसरा चारा ना देखकर लाश वृद्ध के हवाले कर दी गई अगले दिन उसका संस्कार कर दिया गया मृतक अविवाहित था और उसकी व उसके परिवार की किसी से दुश्मनी नही था काफी कोशिश के बाद भी हत्यारों का कोई सुराग नही मिला एक बात मंजूर आलम को खटक रही थी कि राम औतार का कहना था कि मृतक चार दिन पहले 27 फरवरी को घर से गया था जबकि पोस्टमार्टम के अनुसार हत्या पांच दिन पहले 26 फरवरी की रात 9 से 10 बजे के बीच हुयी थी, राहगीर ने उसी 27 फरवरी की सुबह लाश के बारे मे सूचना दी थी यदि मृतक 27 फरवरी की शाम घर से निकला था तो उसकी हत्या एक दिन पहले 26 फरवरी को कैसे हो सकती है। एक स्थानीय कांग्रेसी नेता लगातार सरकार पर दवाब बना रहे थे कि पुलिस इस मामले में लापरवपाही बरत रही है। पुलिस ने तीन बार जांच की परन्तु हत्यारों का कोई पता नही चला मैंने रिकार्डरूम से निकलवा कर मृतक के कपड़ों, घड़ी, जूते, परचून की रसीद, फोटो व अंय सामानों की नये सिरे से जांच तो कुछ नये सूत्र हासिल हुये जैसे मृतक के जूतों का नम्बर 8 था उसकी पैन्ट पर इमरान टेलर्स का मोनोग्राम था उसकी कमीज पर धोबी की चाक का विशेष निशान था सबसे पहले मंैने मृतक के पिता से मुलाकात की जो 60 वर्ष का हष्टपुष्ट घुटे दिमाग का शख्स था। मैंने उससे पूछा तुम्हारा बेटा किस तारीख को गायब हुआ था 27 तारीख को, तुम्हरा बेटा किस नम्बर के जूते पहनता था साहब यह तो मुझे मालुम नहीं, मैने सवाल किया वह किस ब्रान्ड की सिगरेट पीता था साहब वो सिगरेट नही पीता था गांव के कई लोगों ने इस बात की पुष्टि की कि मृतक सिगरेट नही पीता था कभी-कभी शराब जरूर पीता था पहले मैंने गांव के मोचियों से पता किया तो दो तो कुछ नही बता पाये पर तीसरे शिवदीन नामक चमार ने बताया कि साहब मैं ही उसके जूते बनाता था साहब वह सात नम्बर के जूते पहनता था तुम्हे पूरा यकीन है हां साहब उसने मरने के करीब दस दिन पहले ही मुझसे नये जूते बनवाये थे तुम किस डिजाइन के जूते बनाते हो उसने अपने फर्मे व जूते दिखाये वे सब नोकदार थें और उनमें फीता डालने के लिये तीन तीन छेद थे। उनके तलवे चमड़े और बिकुल सपाट थे मैंने उसे चैकी बुलाकर मृतक के जूते दिखाये तो उसने कहा कि ये उसके बनाये जूते नही है, इनका नम्बर 8 है यह आगे से गोल है। गोल जूते बनाने का फर्मा मेरे पास नही हैं मैं सादा सोल लगाता हूँ उसका तलवा डिजाइनदार है इसमें फीता बांधने के लिये चार-चार छेद है। मैंने गांव तथा आसपास के कई धोबियों के चिन्हों की जांच की उनका मृतक की कमीज के चिंह से उनका मिलान किया कमीज का चिन्ह बिलकुल भिन्न था, ना ही आसपास इमरान टेलर्स नाम की कोई दूकान थी लेकिन सारे गांव ने यह जरूर कहा कि उसका बेटा गायब जरूर हुआ था इस केस ने मुझे बुरी तरह उलझा दिया था कि मृतक अगर राम औतार का बेटा नही था तो कौन था और अगर राम औतार का बेटा था तो उसके जूते, कपड़े आदतें राम आौतार से मैच क्यों नही कर रहीं है रार्म औतार ने उसकी शिनाख्त अपने बेटे के रूप में क्योंकि की कोई दूसरा शख्स लाश की शिनाख्त के लिये क्यों नही आया ऐसे कई सवाल थे जिनका मेरे पास कोई जवाब नही मिला इसी बीच मुझे विभागीय काम से लखनऊ आना पड़ा अप्रैल 1964 के तीसरे सप्ताह में मुझे इसी केस के लिये पुनः लखीमपुर जाना पड़ा मैं सदर थाने में कुछ विचार-विमर्श कर रहा था तभी कुछ लोग एक नवयुवक को पकड़ कर लाये जिस पर एक घोबी के साथ अकारण मारपीट करने का आरोप था पूछताछ करने पर उसने बताया कि वह लखीमपुर के मैंगलगंज क्षेत्र के शिवपुरी गांव का निवासी है, वह कल दोपहर अपने चचेरे भाई की बरात में आया था लड़की वालों ने जनवासे में नाई, जूते पालिश वाले व प्रेस करने वाले का इंतजाम किया मैं धोबी को पैन्ट देकर नाश्ता करने चला गया जब मै लौटकर आया तो मेरी पैन्ट बुरी तरह जली गयी थी मैंने धोबी से उसका मुआवजा मांगा तो वह झगड़ा व गाली-गालौज करने लगा तब मैंने उसे मारा, हमने पैन्ट देखी वास्तव में बुरी तरह जल गई तब तक दोनों पक्ष के लोग आ गये वधु के पिता ने मामला सुलझाने के लिये युवक को नई पेंट खरीदने के लिये 12 रूपये दिये वे थाने मे जली पैन्ट छोड़ा तभी अचानक मेरी निगाह पैन्ट के मोनग्राम पर पड़ी जिसे देखकर मैं बुरी तरह चैंक गया पैन्ट पर इमरान टेलर्स का हूबहू वही मोनोग्राम लगा था जो मृतक के पैन्ट पर था मैंने रेकार्डरूम से मृतक के कपड़े मंगवाकर मिलान किया तो दोनांे मोनेाग्राम बिलकुल एक जैसे थे इसमें शक की कोई गुँजाइश नही थी, बरात जा चुकी थी मैंने लड़की वालों को बुलाकर पूछा तो पता चला कि बरात मेंगलगंज के शिवपुरी गांव से आई थी मैं दो काॅन्सटेबल के साथ शिवपुरी पहुँचा यह सौ सवा सौ मकानों की आबादी वाला गांव था मैंने इमरान टेलर्स के बारे मे जानकारी ली तो पता चला कि यह एक बड़ी पुरानी और मशहूर दुकान है मैंने इमरान टेलर्स के यहाँ जाकर उसे दोनो पैन्टें दिखाई तो उसने तस्दीक की कि यह दोनो पैन्टें उसकी ही दुकान की सिली हुयी हैं। लेकिन मृतक वाली पैन्ट के बारे मे वह कोई खास जानकारी नही दे सका मैंने आस-पास के धोबियों को कपड़ों के निशान दिखाये तो एक धोबी ने कहा कि यह निशान तो पंचपतरा गांव के धोबी का लगता है। मैं पंचपतरा जा पहुँचा इस गांव मंे दो धोबी थे एक राम आसरे दूसरा पुत्तीलाल राम आसरे ने निशान देखकर कहा यह नियाान तो पुत्तीलाल का है। मैने पुत्तीलाल को पैन्ट कमीज दिखायी उसने कहा साहब यह मेरा ही निशान है। वो पैन्ट भी पहचान गया उसने कहा कि यह कपड़े तो मनोहरलाल के हैं। लेकिन साबह आप इनके बारे मे क्यों पूँछ रहे है। मैंने उसे बताया कि यह कपड़े पुलिस को एक लावारिस लाश से मिले है। उसने कहा नही हुजूर मनोहरलाल तो जिंदा है और बाहर नौकरी कर रहा है। मैंने उससे मनोहर के मकान के बारे मे पूछा तो उसने अपने बेटे को मेरे साथ भेज दिया गांव के बीचो-बीच एक चबूतरे पर बना था मनोहर का मकान यह चार पांच कमरे का दुमंजिला मकान था उसमें उसकी पत्नी विमला आने दो बच्चों लड़की जमुना सात साल और बेटा प्रमोद चार साल के साथ रहती थी मैंने विमला से अपना परिचय प्रमोद के बचपन दोस्त अशोक के रूप में दिया और मैंने मनोहर के बारे मे पूछा तो उसने बताया कि वह कानपुर में जूता फैक्ट्री में काम करते हैं। मैने पूछा वो कब से घर नही आये हैं तो उसने बताया कि वे पिछली होली मे आये तब से कानुपर मे ही है। कमरे मे मनोहर का फोटो लगा था जो हूबहू मृतक से मिलता था फोटो में बांयी आंख के नीचे चोट का एक हलका सा चोट का निशान था मैंने मनोहर का हालचाल पूछा तो वो बोली ठीक हैं मैने पूछा मनोहर की चिठ्ठी-पत्री तो आती होगी कभी-कभी आती है। कभी-कभी दिनेश उनसे मिलकर आ जाता है। यह दिनेश कौन है। तो उसने बताया वो गांव के सरपंच का लड़का और मेरा मुँहबोला भाई है। जो मेरे घर बाहर के सारे काम निपटाता है। मुझे विमला की बातों मे खोट नजर आया मैं अपना शक जाहिर ना करके लौट आया और स्थानीय पुलिस चैकी में अपना परिचय देकर उनसे विमला और दिनेश के बारे मे जानकारी मांगी उन्होंने दो दिन बाद वहाँ के सब इन्स्पैक्टर ने अपने एक भरोसे के मुखबिर संतोष नाई से मेरी मुलाकात करवाई मुखबिर ने जो जानकारी दी जो इस प्रकार थी पड़ोस के गांव पड़ौना मंे रामलखन नामक एक सम्पन्न कुर्मी किसान रहते थे, उनके मोतीलाल, मनोहर और गण्ेाश तीन बेटे और तीन लड़कियां थीं मनोहर मझँला था और कानुपर की एक जूता फैक्ट्री में सुपरवाइजर था 12 साल पहले मनोहर की शादी पंचपतरा गांव के आशाराम की इकलौती बेटी विमला से हुयी थी शादी के बाद चार-पाँच साल तक तो सब कुछ ठीक चला फिर आशाराम की अचानक मौत हो गई पत्नी पहले ही स्वर्ग सिधार चुकी थी अतः मनोहर अपनी बीबी समेत पंचपतरा में ही रह कर अपने ससुर की लंबी चैड़ी खेती की देखभाल करने लगा इसी बीच वह दो बच्चों का पिता बन गया धीरे-धीरे उसने अपने पिता के पास आना-जाना कम कर दिया और पुश्तैनी जायदाद को लेकर भी उसकी अपने भाईयों से अनबन रहने लगी थी इधर मनोहर अक्सर शराब पीने लगा था, इसी लत से उसकी दोस्ती गांव के सरपंच के बेटे दिनेश से हो गई जो शराबी किस्म का आवारा सुंदर गबरू नवजवान था जब उसकी निगाह विमला की गदराई जवानी पर पड़ी तो वह उसे पाने के लिये बेचैन हो गया दो बच्चों की माँ बनने के बाद भी उसका आकर्षण कम नही हुआ था दिनेश अक्सर समय असमय मनोहर के घर आता जाता था विमला भी दिनेश की निगाह पहचान गई दोनों की आंखे चार हुयी इसी बीच मनोहर के एक दोस्त ने उसकी नौकरी कानुपर की जूता फैक्ट्री मे लगवा दी इधर दिनेश ने विमला को चारा डाला तो वह अपने दिल पर काबू नही रख सकी और परकटे पंछी की तरह दिनेश के जाल मे फँस गई दिनेश की गैरहाजिरी में दोनों वासना में डूबने उतराने लगे मनोहर को जब विमला और दिनेश के संबधों की जानकारी हुयी उसने दिनेश को अपने घर आने से मना कर दिया विमला को भी खूब मारा-पीटा कुछ दिन तक तो दोनो शांत रहे पर दिनेश के जाते ही फिर दोनांे मिलने लगे पिछली होली पर मनोहर के घर आने पर उसे विमला की रासलीला के बारे मे पता चला तो उसने विमला को खूब पीटा। विमला ने मनोहर के पैर पकड़ कर माफी मंागी और यकीन दिलाया कि अब वह दिनेश से कोई संबध नही रखेगी अगले दिन मनोहर कानुपर लौट गया अगले दिन मैंने पड़ौना गांव में मनोहर के पिता से मुलाकात करके उसकी मौत की बात बताई तो घर में रोना पीटना मच गया उन्होने भी रोते रोते यही बातें दोहराई क्या बताऊँ साहब बहू कुलच्छनी निकली मनोहर के भाई ने बताया कि पिछली होली के अगले दिन मैं मनोहर से मिलने पंचपतरा गया था भाभी ने बताया कि मनोहर तो होली के दो दिन पहले ही कानुपर लौट गये लेकिन एक बात पर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ भाभी के चेहरे व गले पर होली का रंग लगा हुआ था अगर भइया दो दिन पहले ही कानुपर चले गये थे तो भाभी ने होली किसके साथ खेली क्योंकि विमला अपने पड़ोसियों से बिलकुल संबध नही रखती थी अगले दिन मैंने दिनेश को गिरफतार कर लिया और थाने मे लाकर अंधेरे मे तीर चलाते हुये कहा कि मैं जानता हूँ कि तुमने विमला के साथ मिलकर मनोहर की हत्या करके उसकी लाश हाईवे डाल दी थी विमला ने अपना जुर्म कबूल कर लिया और उसने बयान दिया है कि तुमनें ही छूरे से मनोहर की हत्या की थी तीर निशाने पर लगा वह रोने लगा उसने बताया कि पिछली होली पर जब मनोहर घर आया तो मैंने मनोहर से माफी मांग कर उसके सामने विमला को अपनी बहन बना लिया मनोहर मेरी बातों मे आ गया उसने ना केवल मुझे माफ कर दिया बल्कि इसी खुशी मे मेरे साथ अपने घर पर शराब पी योजना के अनुसार मैंने जान कर उसे खूब शराब पिलाई जब नशे मे वह बेकाबू हो गया तो मैंने छूरे से उसकी हत्या कर दी फिर अपने एक नौकर को 500 रूपये का लालच देकर उसकी लाश अपने टैक्टर से लखीमपुर राजमार्ग पर फिकवा दी उधर विमला ने कमरे व सब चीजों से खून के धब्बों को साफ किया और सुबह खबर फैला दी कि मनोहर रात ही में कानुपुर चला गया दिनेश खुद उसे स्टेशन पहुँचा आया था। गांव में सबने इस बात पर यकीन कर लिया मैंने रिपोर्ट सरकार को भेज दी बाद में पता चला कि दोनों को आजीवन कारावास की सजा हुयी लेकिन एक अहम सवाल मेरे दिमाग मे गूंज रहा था कि अगर हत्या मनोहर की हुयी थी तो राम औतार ने लाश की पहचान अपने बेटे के रूप मे क्यों की थी मैने राम औतार को लाश की असली पहचान और अपराधी पकड़े जाने की सारी बात बता कर पूछा कि तुमने लाश की झूठी पहचान क्यों की और तुम्हरा बेटा कहाँ है तो वह फूट-फूटकर रोने लगा, उसने कहा हुजूर मेरा बेटा बड़ा आवारा और शराबी था एक रात जब घर के सारे सदस्य पड़ोस के गांव में तिलक मे गये थे वह हरामी शराब नशे मे चूर होकर अपनी भाभी के साथ बुरा काम करने का प्रयास करने लगा तभी मेरा बड़ा बेटा आ गया दोनों में हाथापाई होने लगी राकेश उस पर गंड़ासा लेकर झपटा मेरे बड़े बेटे रामनरेश के हाथ में कांता आ गया इसके पहले कि राकेश रामनरेश पर हमला करता रामनरेश ने राकेश को कांते से मार डाला अगर पुलिस आती तो बहू की इज्जत हवा में उछल जाती। मैंने अपने बेटांे से सलाह करके इस मामले को दबा दिया और लाश को में भूंसे वाली कोठरी में दफना दिया और अगले दिन खबर उड़ा दी कि राकेश शाम सात बजे से कही चला गया है। अब मेरी बहू की इज्जत आपके हाथ में है, मैं भी बाल बच्चों वाला आदमी था मैं यह राज अपने सीने मे दबा कर घर चला आया इन्सपैक्टर रामनेरश सिंह के संस्मरण पर आधारित कथा।
रहस्य-रोमांच कहानी में स्थान व पात्र सभी काल्पनिक है।