गंजेपन और ज्योतिषीय

आयुर्वेद के अनुसार गंजापन वात, पित्त व वायु विकार के कारण होता है, पहले पित्त शरीर मे गर्मी बढ़ाकर केश गिरा देता है। फिर कफ की एक पर्त आकर रोम छिद्रों को बंद कर देती है। ज्योतिष में सूर्य, मंगल व केतु पित्त विकार को तथा शुक्र और चन्द्रमा कफ को बताता है। ज्योतिषी अभयराज सोमवंशी ने कादम्बिनी, नवम्बर 1993 मे छपे लेख मे गंजेपन के कुछ जयोतिषीय सूत्र बताये हैं, जो निम्न है:- 
1. गंजेपन का प्रमुख कारक ग्रह चन्द्रमा है। सूर्य, गुरू,  शुक्र व गुरू गंजेपन के लिये जिम्मेदार है।
2. भरणी, कृतिका, रोहणी, पुर्नवसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, हस्त, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा, श्रवण और पूर्वाभाद्रपद व रेवती कम बाल वाले होते है। भरणी, पुर्नवसु, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, हस्त, श्रवण और पूर्वाभाद्रपद कम गंजे तथा कृतिका, रोहणी, पुष्य, आश्लेषा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठा, रेवती अधिक गंजापन देते है।
3. कर्क, सिंह, तुला, धनु व मीन राशि कम बाल देते है।
4. रोग, मृत्यु ज्योतिष और ज्योतिष ग्रन्थ के अनुसार यदि गुरू लग्न मे हो तो गौर वर्ण, सुडौल शरीर, कम उम्र मे बूढा लगे, सर के बाल जल्दी सफेद हो व गिर जायें 45 वर्ष मे दांत गिर जायें जातक मोटा व पेट बड़ा हो। उपरोक्त सिद्धान्तों को इन जमांकों द्वारा परखा जा सकता है। 
(1) 3 दिसम्बर 1960 शाम- 5 बजे। इलाहाबाद। मिथुन लग्न मे षष्ठेश मंगल, सिंह का राहू तृतीय मे सूर्य शष्ठ भाव में बुध सप्तम में शुक्र गुरू व शनि तथा नवम मे केतु 12 में वृष का चन्द्रमा मृगशिरा नक्षत्र। जातक युवावस्था से ही गंजा है। 
(2) पं. जवाहर लाल नेहरू- 14 नवम्बर 1888। 11.14 मिनट रात्रि। इलाहाबाद। कर्क लग्न मे चन्द्र सिंह मे शनि कन्या मे मंगल तुला मे बुध, शुक्र वृश्चिक मे सूर्य, धनु मे केतु गुरू, मिथुन में राहू।


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