मेरे अनुभव सिद्ध ज्योतिष योग
1. मुहुर्त ग्रन्थों के अनुसार जब गुरू शुक्र पंचाग में परस्पर दृष्ट हो तो विवाह संबधी कार्य नही होते है। यदि योग कुण्डली में हो तो विवाह में पूर्व व बाद मे ंभारी बाधा आती है। तथा इन ग्रहों की दशा काल मे जातक को किसी स्त्री की शव यात्रा मे जाना पड़ता है।
2. यदि कोई मनुष्य एव वर्ष के अंदर कृतिका नक्षत्र में 6 बार व या रोहणी नक्षत्र मे 8 बार सर मुंँड़वाता है। तो उसकी मृत्यु हो जाती है।
3. मघा के सूर्य यदि कोई ब्याई गाय खरीदता है। तो गाय स्वामी की मृत्यु हो जाती है।
4. यदि किसी जमंाक मे चन्द्रमा शनि की राशि मंे गया हो तो उस पर कलंक लगता है।
5. मंगल यात्रा कारक है मंगल की दशा में जातक यात्रा अवश्य करता है।
6. मूल नक्षत्र में जंमे जातक या जातिका की नक्षत्र शंाति विवाह के समय भी करनी चाहिये अन्यथा विवाह के पूर्व और पश्चात दोनों पक्षों में किसी सदस्य की मृत्यु होने की संभावना होती है।
7. यदि जमांक में वृश्चिक राशि मे शनि हो तो मकान के निकट गढ्ढा होगा।
8. स्कंद पुराण की एक कथा के अनुसार एक राजा को एक विषकन्या पैदा हुयी राजा ने कन्या के भविष्य के बारे मे ज्योतिषियों से पूछा तो उन्होंने जवाब दिया यह कन्या अपने मायके और सुसराल दोनों परिवार मे विनाश पैदा करेगी ज्योतिषियों ने कहा, इसके जमांक मे सूर्य तुला मे नीच का चित्रा नक्षत्र में है जो विषकन्या योग है यह योग साल मे एक बार कार्तिक मास में आता है।
9. जैमिनी ज्योतिष मे उपपद के सिद्धान्त का वर्णन है मेरे अनुसार उपपद का अर्थ उपगमन करने वाला होता है। अतः लग्न पद से 12 भाव ही उपपद होगा।
10. मेरे अनुसार मंगल स्थान परिवर्तन का कारक है। ग्रह त्याग और स्थानान्तरण मे मंगल का अध्ययन आवश्यक है। जहां तक मंगल ग्रह का चमत्कारी फलादेश से संबध है वह अपनी महादशा, अन्र्तदशा, शूक्ष्म या प्राण दशा मे स्थानान्तरण कराता है।
11.फलादेश में सम सप्तक का बड़ा ही महत्व है। सम सप्तक मे शुभ ग्रह, उच्च या स्वराशि का ग्रह सदैव कारक का प्रभाव रखता है। वर और कन्या की राशियां यदि परस्पर समसप्तक हो तो यह राशि भाव समसप्तक कहलाता है।
एकादश तृतीये च, तथा दश चतुर्थ वे।
ग्रह मैत्री किम कुर्यात, उभयोः समसप्तकम।।
समसप्तक शुभ है परन्तु कर्क मकर व सिंह कुंभ इसके अपवाद हंै। समसप्तक ग्रह परस्पर एक दूसरे की मदद करते है। सही कारण है कि श्री राम की सहायता वानरों ने की थी यही निष्कर्ष श्री हनुमान जी की कुण्डली से भी निकलता है।
त्रि-एकादश:- वर और कन्या की राशियां यदि तृतीय एकादश होने पर सर्वथा शुभ मानी गयी हैं।
एक राशौ महाप्रीतिः, चतुर्थ दशमे सुखम।
तृतीय एकादशे वित्तं, सुप्रगाः समसप्तके।।
12. कुण्डली मे द्वितीय से षष्ठ भाव रात्रि के समय के हैं। अतः इन स्थानों पर ग्रह के गोचर के समय रात्रि मे विवाह होता है। कुछ लोग रात्रि मे कार्य या नौकरी मे करते हैं। यदि चर्तुथेश तथा दशमेश का संबध हो तो जातक मे रात्रि मे कार्य करता है।
13. केतु पर 30 जनवरी 10 आयोजित गोष्ठी मे राहू से 15 वें नक्षत्र में केतु होता है यदि जातक का जंम केतु की दशा में हो तो उसे जीवन मे राहू की महादशा नही मिलती है। दशमांश व कुछ अंय वर्गो चक्रांें में राहू केतु एक ही राशि मे होते है। इस स्थिति मे राहू का फलादेश शनि के आधार पर और केतु का फलादेश मंगल केे आधार पर करें केतु चर व स्थिर राशियों मे लाभ देता है। 3, 6, 11, व 12 वे भाव में लाभ देता है।
14. 26 नव 11 में बालारिष्ट तिथी गंडात, राशि गडंात, नक्षत्र गडंात मे जंमा बच्चा अल्पायु हो यदि बच्चा बच जाय तो राजा होगा।
12 दिसम्बर 11 जाॅब पर गोष्ठी शनि से त्रिकेश की दशा मे जाॅब मे कष्ट होगा लग्न पद पर गुरू का गोचर जाॅब मे लाभ देगा शनि से दशम पर दशमेश का गोचर या शनि से दशम भाव पर गुरू का गोचर लाभ देगा।
(22) नवम्बर 2011 यदि जंम नक्षत्र मंगल का हो तो शनि उसका शत्रु हो यदि जंम नक्षत्र मंगल का हो तो शनि उसका शत्रु हो यदि जंम नक्षत्र सूर्य हो तो शनि उसका शत्रु हो पिता को कष्ट हो संतान बाधा हों तो गीता का 12 वां अध्याय पाठ करें बुध शत्रु हो तो आदित्य हृदय स्त्रोत पढें। अमावस्या में जंम हो तो बंटवारा हो।
(मार्च 12) में वाहन पर शुक्र दो पहिया व पृथ्वी पर चलने वाले वाहन को बताता है। 2, 4, 9, 12 वाहन यात्रा चन्द्रमा जलयान, गुरू वायुयान गुरू हाथी की सवारी, 1, 2, 5, चतुष्पद राशि में योग जानवरों का वाहन नवम मे गुरू नर वाहन, सूर्य वाहन, शुक्र छठे में या नीच का शुक्र हो तो वाहन मे बाधा हो चर राशि यात्रा कारक है (30 जनवरी) 2014 को नपुसंकता पर कहा जल तत्व की राशि व 1,7, 8, भाव का अध्ययन महत्वपूर्ण है। बुघ का शनि या राहू के नक्षत्र मे जाना पुंसकता देगा सप्तमेश अपने से 8 भाव मे हो चन्द्र शीघ्र पतन देगा द्वितीय भाव का गुरू भी शीघ्र पतन देगा।
(28 मार्च 14) वक्री ग्रह सूर्य सें 6, 7,8, में वक्री पिजा जातक के जंम के समय घर से दूर था सूर्य से 12 वें शनि पिता की मृत्यु होगी किसी ग्रह के साथ शुभ ग्रह हो तो उस ग्रह को बल अपना बल प्रदान करते है। किन्तु ग्रह के साथ पाप ग्रह शनि मंगल बैठे हो तो ये उस ग्रह का बल खींचते है।
24 मार्च 2016 नीच भंग राजयोग हो यदि नीच का ग्रह अपनी उच्च राशि को देखता हो उच्चभंग राजयोग हो।
8 जून 15 को राहू के अशुभफल यदि मृत्यु के समय शनि राहू येाग हो तो मृतक का मृत्यु के तुरंत बाद जंम हो जाय मृत्यु कुण्डली से चैथा भाव अगले जंम के बारे मे बताता है। 21 जनवरी 16 को अपराधियों के ग्रह योग पार आयोजित गोष्ठी में जज साहब ने कहा 3 व 11 भाव अपराधियों के हाथ व हथियार है 1, 8 व 12 वे भाव से अपराध का अध्ययन करना चाहिये 29 मई 16 को अपने अनुभव बताते हुये उन्होने कहा पापग्रस्त चन्द्र ससुराल पक्ष से निराशा देता है 10 वें भाव मे पापग्रस्त शुक्र वेश्यागमन कराये 31 जुलाई 16 को दुर्घटना के योग पर 4, 9, 12 वाहन के भाव है। तथा लग्नेश, चतुर्थ व अष्ठम वाहन दुर्घटना के भाव है। चतुर्थेश षष्ठ मंे शनि युत दुर्घटना दे बुध पशु है।
28 अगस्त 16 अदृश बाधा आज हम लोग अदृश्य बाधा पर बात कर रहे है। आज आद्र्रा राहू का नक्षत्र बलवान है। इसलिये अदृश्य बाधा पर बात कर रहे है। जल राशि का शुक्र बाधायें दे गुरू छठे मे बाबा के पाप गुरू बाबा को बताता है। बाबा मामा चाचा को दण्ड दे भले ही निर्दोष हा बुध बंधन कारक हो तो लंबी जेल हो शनि चन्द्र पुर्नभु योग दो मुहूर्त मे यदि शुक्र धनु या मीन मे हो तो विवाह ना करे अशुभ होगा सप्तमेश गुरू सप्तम मे पति के कई विवाह देगा शनि चन्द्र योग पुनर्भु योग बनाये शुक्र यदि मारकेश हो तो सर्वाधिक बाधाक होगा सूर्य मंगल योग युद्ध मे हानि देगा 8 वें भाव मंे शनि चन्द्र योग प्रेत बाधा देगा दो विवाह दे यदि घर मे पालतु जानवर हो तो इसका मतलब है। कि पूर्व जंम के कुछ संबधी पशु योनि मे है। जो अपने कर्म का ऋण उतारने या वसूलने घर मे आये है। मेष, वुष, सिंह धनु पशु राशियो व बुध मंगल पशु ग्रह है। शनि व बुध पक्षी है। बुध तोता है। शनि विषम राशि मे पुत्र होता है। वक्री शनि गत जंम का कोई काम अधूरा रह गया है जो जातक पूरा करे शनि बुध पक्षी बुध तोता, वक्री शुक्र या नीच शुक्र गत जंम मे जातक धन संबधी अपराध करे यदि गोचर मंे नीच वक्री हो तो इस समय गत जंम के धन संबधी अपराध का दंड मिलेगा या शनि बुध के बीच पापग्रह पत्नी मरे मेष राशि बिल्ली है।
26 फरवरी 17 भ्रष्टाचार के योग अष्ठमेश कलंक का प्रमुख कारक है। दशमेश व अष्ठमेश का संबध हो युति संबध अति प्रभावशाली और दृष्टि संबध निर्बल कलंक देगा यदि यह योग एक ही नवांश या नक्षत्र में हो तो अति प्रभावशाली फल देगा शनि बुध प्रचार व प्रसार शनि संसार मे प्रसिद्ध शनिवत राहू अतः चन्द्र राहू भी कलंक देगा।
27 नवम्बर 16 नोटबंदी के दीर्घकालिक परिणाम मिथुन का राहू उच्चाभिलाषी है । उत्तम फल देगा जो वृष के राहू से अधिक शुभ फल देगा शुक्र के नक्षत्र मे गये राहू या केतु आजीवन कष्ट देंगे।
25 मई 17 को प्रोग्रेस मे बाधा यदि बाधक राशि की दूसरी राशि नवम भाव में हो तो भाग्य मे बाधा हो यदि कुंडली मे सूर्य बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ जायेगा चन्द्र बिगडे़गा तो नीरस व असफल जीवन हो लग्नेश व अष्ठमेश बाधक माने जाते है। जिस भाव मे ग्रह हों वह भाव बली और जो भाव खाली हो वह निर्बल और बाधक हो जाता है। 22 वें देष्काण या मांदि का राशि स्वामी यदि भाग्य भाव, लग्न, चन्द्र या बाधकेश से युत हो तो बाधा दे सूर्य यदि 1 अंश पर हो तो राजा भी भिखारी हो जतायेगा संक्राति में गया ग्रह बाधा डालेगा बाधकेश का नवांशेश जिस भाव से संबध रखे उस ग्रह के कारको मे संबधियांे से बाधा डालेगा मकान का स्वामी ग्रह यदि मंगल के साथ हो तो जातक भाई के साथ रहेगा कारको भाव नाशस्य नवम मे उच्च का सूर्य पिता को बाधा देगा 7 वें मंगल या 7 वें मे उच्च शुक्र पत्नी को बाधा देगा चैथे उच्च का शनि जाते घर छोड़ कर जंगल जंगल भटके शनि नवम भाव मे पिता को लाभ देगा नीच का ग्रह बताता है। कि गत जंम मे उस ग्रह की उर्जा प्रयोग नही हुयी थी या जातक ने उस ग्रह के कारकों या संबधियों के प्रति कत्र्तव्य का पालन नही किया था अतः उसे अंय ग्रह की मदद लेनी पड़ेगी नीच का गुरू महायोग देगा पर बचपन मे स्थिति बेहद खराब होगी यदि सूर्य या अंश ग्रह 1 अंश का होकर सप्तम भाव या सप्तमेश से संबध बनाये तो पिता के व्यवहार के कारण विवाह प्रस्ताव टूटें जातक अविवाहित रहे। पुराण के अनुसार गुरू और चन्द्रमा का मिलन ही पुरूष और स्त्री का मिलन है। गुरू 2, 5 व 11 वें भाव का कारक हैं। उसकी चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव में उसकी स्थिति शुभ नहीं होती है। इसी प्रकार दशम भाव का कारक बुध होने के कारण ग्रहों का निम्नलिखित संबध अशुभ नही कहा जा सकता है।
1. गुरू व बुध।
2. गुरू व सूर्य।
3. गुरू व चन्द्रमा।
जिन जातकों की कुण्डलियों में गुरू व चन्द्रमा का संबध नही होता हैं वे अविवाहित ही रह जाते हैं।
2. विवाह का समय निर्धारित हों जाने के बाद विवाहित जीवन की अवधि का ज्ञान आवश्यक है। अतः सप्तम भाव पर विचार करने से ज्ञात होता हैं कि शनि व सूर्य ही पत्नी की आयु के कारक ग्रह हैं। अतः द्वितीयेश और सप्तमेश होने के कारण इनका नीच राशि में होना व इनकी महादशा व अन्र्तदशायें बाद में आना व नवांश में भी इसी प्रकार की स्थिति का बनना विवाह के लिये शुभ संकेत है। महर्षि जैमनि ने भी गुरू शूले कलत्र रूप का आवश्यक कह कर पत्नी की मृत्यु का समय गुरू के आधार मान कर गणना करने का निर्देश दिया है। सूर्य और शनि की जातक की कुण्डली में अत्यन्त बलवान होने की स्थिति में शुभ ग्रहों के योग व दृष्टि के अभाव में पत्नी सुख समाप्त हो जाता है। सूर्य, शनि लग्न से जो बलवान हो पत्नी की मृत्यु के कारक ग्रह हुये। यदि लग्न में विषम राशि हो तभी यह सिद्धान्त लागू होगा। यदि लग्न मे सम राशि हो तो राहू और शुक्र मारक ग्रह होगें। इसी प्रकार सप्तम भाव।