परिवर्तन योग से करें भविष्यवाणी

- डी.एस. परिहार

भारतीय ज्योतिशशास्त्र में भविष्यकथन के सैकड़ों सूत्रो का वर्णन है। इन्ही सूत्रों मे से एक है परिवर्तन योग जिसका वर्णन पाराशरीय और नाड़ी ग्रन्थों दोंनों मे पाया जाता है। हाँलाकि दोनो प्रकार के ग्रन्थों में इन सूत्रों को विभिन्न तरीको से प्रयोग किया गया है
ज्योतिष मे परिवर्तन योग के तीन रूप पाये जाते हैं।
1. भाव परिवर्तन
2. राशि परिवर्तन
3. नक्षत्र परिवर्तन 
भाव परिवर्तन पाराशरीय व कुछ नाड़ी ग्रन्थों जैसे षुक्र नाड़ी मे इसके सूत्रो का वर्णन पाया जाता है। जो भावा के स्वामियो के बीच स्थान परिवर्तन से बनता है। जैसे चतुर्थेश षष्ठ भाव मे जाय और षष्ठेश चतुर्थ भाव मे जाय। इसके भी तीन भेद हैं।
1. दो शुभ भावों के स्वामियों का परस्पर परिवर्तन जैसे लग्न व पंचम भाव का परिवर्तन या दो केन्द्रेशों का परिवर्तन या केन्द्र और त्रिकोण भाव मे परस्पर परिवर्तन।
2. दो त्रिकेशांे का परिवर्तन जो विपरीत राजयोग बनाता है।
3. किसी केन्द्रेश या त्रिकोणेश का त्रिकेश से परिवर्तन।
जैसे दशमेश का द्वादेश से परिवर्तन या पंचमेश या द्वादेश के बीच परिवर्तन।
2. ग्रह या राशि परिवर्तन
 इसका वर्णन स्व. आर. जी. राव द्वारा अनुवादित और शोधपरक भृगु नन्दी नाड़ी मे मिलता है। इसके परिणाम आश्चर्यजनक होते हैंे।
3. नक्षत्र परिवर्तन
 दो ग्रहों के राशि परिवर्तन के समान ही दो नक्षत्रों के स्वामियों मे भी स्थान परिवर्तन पाया जाता है। उसके फल दो ग्रहों के परस्पर परिवर्तन के फलों के ही समान होते हैं। जैसे मंगल बुध मे परस्पर राशि परिवर्तन के जो फल होंगें वही फल बुध के नक्षत्र व मंगल के नक्षत्र परिवर्तन के होंगें जैसे मंगल रेवती बुध के नक्षत्र मे हो और बुध मृगशिरा मंगल के नक्षत्र मे हो।
शुक्र नाड़ी के परिवर्तन सूत्र स्व आर संन्थानम जी ने ‘डाक्ट्रिन आफ शु़क्र नाड़ी‘ में इन सूत्रों का वर्णन किया है।
1. सहज भाव श्लोक संख्या 8 तृतीथ भाव मे गुरू हो और चतुर्थ भाव और लाभ भाव मे परिवर्तन हो तो सहोदर पैदा होंगा।
2. उपरोक्त अध्याय श्लोक 17 के अनुसार यदि दशम और व्यय भाव मे परिवर्तन हो तो तथा लाभेंश चतुर्थ भाव मे हो बड़ भाई या बहन पापी हो (लाभ भाव के दोनो ओर के भाव और लाभेश लाभ भाव से छठे हो)
3. सहज भाव, श्लोक 10, तृतीय व षष्ठ  भाव मे परिवर्तन तथा षनि से 7 वें चन्द्र, मंगल, राहू हों तो जातक के भाई बहन जीवित ना रहें। 
4. तृतीय व दशम भाव मे परिवर्तन हो तथ गुरू द्वितीय भाव मे हो तो छोटे भाई दुर्भाग्य भोगें।
5. भाई कारक मंगल 12 वें हो तथा लग्न और तृतीय मे परिवर्तन हो तो भाइ्र्र बहनों को दुर्भाग्य हो (कालपुरूष की प्रथम तृतीय राशि का परिवर्तन है। मेष मिथुन राशियां दोनो शत्रु)
6. शु़क्र का तृतीय मे परिवर्तन जातक के शरीर मे सुनहरी ज्योति हो।
7. तृतीय व सप्तम मे परिवर्तन व गुरू 12 वें भाव मे हो  स्वर्ण आभूषणो ंकी प्राप्ति हो (सप्तम भाव स्वर्ण, आभूशणे का है।)
8. तृतीय अष्ठम मे परिवर्तन मे स्वर्ण आभूषणों की अभिलाषा अधूरी रहे।
9. मातृ भाव श्लोक 31, चतुर्थ व दषम मे परिवर्तन हो तथा इन भावों मे से किसी एक पर गुरू की दृष्टि हो तो एक बड़ी बहन हो।
10, दशम व चतुर्थ मे परिवर्तन हो व लग्नेश उच्च का हो तो जातक विशाल जमीन जायदाद का स्वामी हो।
11, श्लोक 100, लग्नेश व दशम मे परिवर्तन हो तथा गुरू दशमस्थ होकर लग्नेश को देखे आजीवन दुःख मिले।
12. पुत्र भाव 94 वां श्लोक, लग्न पंचम मे परिवर्तन हा व राहू की दृष्टि हो बिना गुरू या शुक्र प्रभाव के दत्तक पुत्र प्राप्त हो।
13. भाग्य भाव श्लोक 24, पंचम व नवम मे परिवर्तन हो तथा सप्तमेश लग्न मे हो भाग्यवान व सुख भोगे।
14. चतुथ्र्र नवम भाव मे परिवर्तन हो। चन्द्रमा अति नीच अंश मे हो जंम के पूर्व पिता मरे माता किसी के साथ  भागे।
15. नवम व दशम मे परिवर्तन हो गुरू 3 या 8 भाव मे हों गुरू माता या पितृ भाव से 12 वें व्यय भाव मे हो जातक माता-‘पिता की मृत्यु शय्या पर रहे और उनका अंतिम संस्कार करे।
16. लग्न व अष्ठम भाव मे परिवर्तन हो तथा षष्ठेश व द्वितीयेश की युति 11 वे भाव मे हो तो जातक हर जगह हारे। 
 स्टार टेलर मैगजीन के जुलाई 2006 के अंक मे छपे डा. एच.वी. मेहता के लेख ‘परिवर्तन योग‘ में पूर्व प्रधानमंत्री इद्रिरा गांधी की जंमाक मे निम्न तीन परिवर्तन योगों का वर्णन है। द्वितीयेश व पंचमेश तथा लग्नेश चन्द्र, सप्तमेश शनि का परिवर्तन तथा षष्ठेश व लाभेश का परिवर्तन जिनमे से प्रथम दो परिवर्तनों ने राजयोग दिया और तीसरे परिवर्तन ने दुःखद अंत दिया लग्न व अष्ठम का परिवर्तन शुभफल देता है। परिवर्तन योग मे शनि द्वादेश या षष्ठेश होकर योग बनाये तो अशुभफल दें। 
भाव परिवर्तन
लग्न व द्वितीय में धनी, ज्ञानी, यशस्वी, परिवार मे धन व्यय।
लग्न, तृतीय में पारिवारिक सुख, राजसम्मान, निर्बल।
लग्न चतुर्थ मे अस्थिर दिमाग, क्षमाशील, माता पिता भक्त।
लग्न पंचम में
लग्न षष्ठ में स्वस्थ बली, लालची।
लग्न सप्तम मे पितृभक्त, पत्नी से सुख।
लग्न अष्ठम में चोर, जुआरी सजा द्वारा मृत्यु।
लग्न नवम मे दूर निवास, राजसम्मान, तीर्थयात्रा व अनेक यात्रायें
लग्न दशम मे धनी, यशस्वी, राजतुल्य हो
लग्न लाभ में अचानक लाभ, दीर्घायु, धनी,शिक्षित।
लग्न द्वादश मे भारी व्यय, लालची,विदेश यात्रा।
द्वितीय भाव परिवर्तन
द्वितीय तृतीय- में भातृसुख, साहसी, घरेलू आर्थिक समस्यायों मे फँसे।
द्वितीय चतुर्थ मे- अच्छी आय, संतान, चिन्ता।
द्वितीय पंचम में- संतान, परिवार से चिन्तित।
द्वितीय षष्ठ-बुद्धिमान, पत्नी, भाइयों से शत्रुता, दुःखी, वाहन सुख, रोगी।
द्वितीय सप्तम में-पत्नी, भूमि से आय, धनी, घंमडी, पत्नी से कलह।
द्वितीय अष्ठम में-धनी, दयालु, लालची सरकार से खतरा, अल्पायु।
द्वितीय नवम में-धनी, यशस्वी, बुद्धिमान।
द्वितीय दशम में-लालची, कटू वाणी।
द्वितीय लाभ में-सुखी,यशस्वी, बुद्धिमान।
द्वितीय व्यय में- संपत्ति का क्रय विक्रय, अति व्यय।
तृतीय चतुर्थ में- सुन्दर मकान, धनी, भाइयों से सुखी।
तृतीय पंचम मे-एकान्तवासी, भाइयों से लाभ।
तृतीय षष्ठ मे-भातृ सुख, बाधायें, व्यापार में संघर्ष।
तृतीय सप्तम में-दिलेर, पत्नी से आय, दुःचरित्र,यश।
तृतीय अष्ठम मे-विकृति, भातृहीन, विकृति।
तृतीय नवम मे-संबधी, भाइयों से लाभ, नये उघोग में लाभ।
तृतीय दशम मे-समाजसेवा से लाभ, राजसम्मान,व्यापारी तृतीय लाभ में-लाभ, पत्नी, भाइयों से शत्रुता।
तृतीय व्यय में-राजा, भूमि, वाहन से लाभ,बुरी आदतें, विदेशी मामलों में लाभ।
चतुर्थ भाव परिवर्तन-
चर्तुथ पंचम में-उत्तम षिक्षा, राजयोग, वाहन, अचल संपति से लाभ।
चर्तुथ षष्ठ में-मामा से लाभ, उत्तम वैवाहिक जीवन।
चर्तुथ सप्तम में-उत्तम वैवाहिक जीवन, विवाहोपरान्त भाग्योदय, अपार संपत्ति। 
चर्तुथ अष्ठम में-माता को कश्ट, वाहन से हानि, शैक्षिक बाधा।
चर्तुथ नवम में-संप़ित्त, वाहन सुख, माता दीर्घायु।
चर्तुथ दशम में-संप़ित्त, वाहन सुख, व्यापार में लाभ।
चर्तुथ लाभ में-माता, मित्र, बड़े भाई,संपति से लाभ। चर्तुथ व्यय में-शिक्षा, माता को हानि।
पंचम भाव परिवर्तन-
पंचम सप्तम में-प्रेम विवाह व उत्तम संतान।
पंचम अष्ठम में-शिक्षा मे बाधा, संतान से हानि।
पंचम नवम में-धर्म, संतान से लाभ और संतान द्वारा भाग्योदय।
पंचम दशम में-राजयोग, धनी, यशस्वी, लाटरी से लाभ।
पंचम लाभ में-पुत्र, बड़़े सहोदरों से लाभ।




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