अर्चना के काव्य में है निश्छल हृदय की पवित्रता: मानव

अर्चना जायसवाल ‘सरताज’ का काव्य, मुक्त हृदय के स्वच्छंद उद्गार हैं। जिसमें बनावटीपन लेशमात्र भी नहीं हैं। इनके काव्य में निश्छल हृदय की पवित्रता बिलकुल आईने की तरह साफ प्रतिबिम्बित होती है। इन्होंने अपने काव्य में सार्वभौमिक प्रेम की आवाज को बुलन्द किया है। जो जाति, धर्म, मजहब, लिंग, भाषा आदि सीमाओ से परे हो। साथ ही एक बड़ी बात बताने की कोशिश की है,कि मात्र ’प्रेम’ ही ऐसी शक्ति है, जो दुनिया की हर दीवार को गिराकर इंसान को इन्सान बनाये रख सकती है। यह बात गुफ्तगू द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में अनिल मानव ने अर्चना जायसवाल ‘सरताज’ की कविताओं पर विचार व्यक्त करने हुए कहा। जमादार धीरज ने कहा कि कवयित्री अर्चना जायसवाल प्यार और मानवता के सेतु बनाकर संसार से भेदभाव और घृणा मिटा कर सर्वत्र मैत्री भाव और भातृत्व की पवित्रत भावना के प्रसार की पवित्र कल्पना करती हैं। वह कहती हैं कि-‘ चलो एक बर फिर से एक सेतु बनाते हैं/परंपरा और संस्कृति की सीढ़ी पर पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचाते हैं।’ साथ ही कांटो से मित्रता कर साहस सौंदर्य और सामंजस्य के पाठ पढ़ने की तरफ भी संकेत करती हैं। भाषा और शिल्प सामान्य है, प्रतिभा और लगन तो है ही अध्ययन से रचनाओं मंे और निखार ला सकती हैं। डाॅ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ ने कहा कि कविता मनुष्य के सुख-दुःख की सहज अभिव्यक्ति है। काव्य हमें चेतना प्रदान करता है और कुछ करने की ही नहीं, कुछ कर गुजरने की भी प्रेरणा देता है। अर्चना जायसवाल की कविताओं में आत्मचिन्तन के चिह्न अधिक हैं। वे प्रेम और सौहार्द की वकालत करती हैं। यह प्रेम, प्रेम की सामान्य संकल्पना से अधिक व्यापक है। यह घृणारहित है। यहां सद्भावना एवं वसुधैव कुटुंबकम् की भावना अन्तर्निहित है।
डाॅ. नीलिमा मिश्रा के मुताबिक अर्चना जायसवाल सरताज की कविताएं एक ऐसी दुनिया की तलाश है जहां सिर्फ प्यार ही प्यार हो, न कोई नफरत ,न द्वंद ,न कहीं धर्म-जाति की दीवार सिर्फ मानवतीयता का राज्य हो। जहां प्रेम की बदरी छायी रहे और प्रेम की ही बरसात में वो भीगती रहें। कवयित्री मानव जीवन की सारी कड़वाहट को अपने स्वप्न लोक के संसार में मिटा देना चाहती है। ऐसी भावनाओं को शब्दों में पिरो कर अर्चना जी ने अपनी कविता का संसार रचा है। इनके अलावा नरेश महारानी, शगुफ्ता रहमान, मनमोहन सिंह तन्हा, ऋतंधरा मिश्रा, सम्पदा मिश्रा, सागर होशियारपुरी, संजय सक्सेना, रचना सक्सेना, रमोला रूथ लाल ‘आरजू’, प्रभाशंकर शर्मा और दयाशंकर प्रसाद ने भी विचार व्यक्त किए। संयोजन गुफ्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज अहमद गाजी ने किया। बुधवार को अना इलाहाबादी के गजल संग्रह ‘दीवान-ए-अना’ पर परिचर्चा होगी।


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