विजय की गजलों में आम इंसान का दर्द: प्रभाशंकर

विजय प्रताप सिंह की गजलें सिर्फ हुस्नो-शबाब तक सीमित नहीं है, बल्कि इनमें आमजन की समस्याओं पर जद्दोजहद करते हुए जज्बात दिखाई पड़ते हंै। शब्दों को इतने सलीके से पिरोया गया है कि सब मिलकर मोतियों की माला बन गए हैं। शब्द भाषा भाव और शिल्प सभी ने मिलकर गजलों का एक अच्छा फ्रेम तैयार किया है। एक बड़े शायर के सीने में सदी का दर्द छुपा होता है। पता नहीं क्यों आपसे आशा है कि यह दर्द आपकी क्रांतिकारी कलम से आने वाले समय में लिपिबद्ध होकर निकलेगा। यह बात गुफ्तगू द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में मैनपुरी जिले के बीएसए विजय प्रतापसिंह की गजलों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रभाशंकर शर्मा ने कही।
इश्क सुल्तानपुरी ने कहा कि विजय प्रताप सिंह की रचनाएं हिंदुस्तानी गजल की रवायतों को निबाहने के साथ ही साथ वर्तमान परिवेश और मानव जीवन की परिस्थितियों और संघर्षों को समेटे हुए हैं। एक नए कलेवर में विजय सिंह गजलें कह रहे हैं, शुरुआती दौर की मशक्कतों के अलावा गजलों में पूरी रवानी और ताजगी मौजूद है। दयाशंकर प्रसाद ने कहा कि विजय की गजलों को पढ़ने के बाद ऐसा लगा जैसे यह उनके आसपास की धड़कनों की अभिव्यक्ति हैं। उनके दिल की कसक गजल के रूप में परिणीत होकर बहचली है। इस संदर्भ में उनकी एक गजल चितको को विकल कर देती है- ‘इस तरह जिंदगी रायगां न करें। मजबूर कोई इतना हो खुदा न करें।’ विभिन्न प्रतिष्ठित शैक्षिक पदों पर रहकर साहित्य सृजन इनके साहित्य के प्रति घनिष्ठ अनुराग को दर्शाता है।
सुमन ढींगरा दुग्गल ने कहा कि विजय प्रताप सिंह की शायरी युवा वर्ग के लिए प्रेरणास्रोत हैं। भाव पक्ष में गहराई है तथा इन्होंने बिल्कुल आम जुबान में अपने आसपास के हालात और संवेदनाओं को अशआर में ढाला है। गजलें मनमोहक और भावप्रवण हैं। डाॅ. नीलिमा मिश्रा ने कहा कि विजय प्रताप जी की शायरी एक ऐसी पाठशाला है जहां आपको जिंदगी के कई हुनर और सलीके सीखने को मिलते हैं, जो महज किताबी नहीं अनुभव की भट्टी में तपाकर निकाले गए हैं। इनके अलावा मनमोहन सिंह तन्हा, जमादार धीरज, अर्चना जायसवाल, डॉ. ममता सरूनाथ, नरेश महारानी, शगुफ्ता रहमान, ऋतंधरा मिश्रा, अनिल मानव, रमोला रूथ लाल आरजू, संजय सक्सेना, रचना सक्सेना और सम्पदा मिश्रा ने भी विचार व्यक्त किए। संयोजन गुफ्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज अहमद गाजी ने किया। शुक्रवार को दयाशंकर प्रसाद के काव्य संग्रह ‘भारे की बेला’ पर परिचर्चा होगी।


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