कोई न थाम सका उस सैलाब को
महिला काव्य मंच प्रयागराज ईकाई उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में महिला काव्य मंच प्रयागराज ईकाई की अध्यक्ष ’रचना सक्सेना’ के संयोजन मे एक समीक्षात्मक परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा प्रयागराज की वरिष्ठ कवयित्री एवं महिला काव्य मंच प्रयागराज ईकाई की महासचिव ऋतन्धरा मिश्रा जी पर केन्द्रित रहा। इस परिचर्चा के अंतर्गत उनकी कुछ रचनाओं पर प्रयागराज की वरिष्ठ कवयित्रियों एवं साहित्यकारों ने अपने विचार प्रस्तुत किये।
वरिष्ठ कवयित्री उमा सहाय ने कहा कि एडवोकेट ऋतन्धरा मिश्रा जी की कलात्मक रुचियों के क्रियान्वयन का दायरा अत्यंत विस्तृत है। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा से गुंफित है। वह स्वयं तथा उनके जैसी कर्मठ महिलाएं नारी सशक्तिकरण की वास्तविक प्रतिमूर्ति हैं। उनकी कविताएं नारी विमर्श के मुद्दों से भरपूर हैं। वह वैचारिक ऊर्जा से भरी हुई अतुकांत कविताएं लिखने में सिद्धहस्त हैं, फिर भी नारी सुलभ कोमल भावनाओं को उन्होंने अनदेखा नहीं किया है। साहित्य, अभिनय ,समाज सेवा तथा इनसे संबंधित अनेक संगठनों से जुड़ाव इनके जीवन की सक्रियता की विशेषता है।
वरिष्ठ कवयित्री एवं लेखिका ’जया मोहन’ ने कहा, हर क्षेत्र में अग्रणी रहने वाली प्रयागराज की सशक्त हस्ताक्षर ऋतन्धरा जी की कवितायें नारी मन की व्यथा को उजागर करती है। वो स्वयं एक कथाकार,आकाशवाणी व दूरदर्शन की संयोजिका,रंगमंच की बेहतरीन अदाकारा,व कुशल अधिवक्ता है। उनके ये सब गुण उनकी कविताओं में दिखते है।
वरिष्ठ कवयित्री ’कविता उपाध्याय’ का कहना है, ऋतन्धरा मिश्रा जी नारी विमर्श की जीती जागती मूर्ति हैं। यह आकाशवाणी में बड़े मनोयोग से कार्यरत हैं। दूरदर्शन में भी इनकी सक्रियता रही है, साथ ही बड़ी उम्दा कलाकार भी हैं, रामलीला में कौशल्या का इतना जीवंत अभिनय किया कि जनता इन्हें कौशल्या के नाम से पुकारने लगी। आगे उनकी कविताओं पर विवेचना करते हुऐ वे कहती हैं कि सभी कविताएं छंद मुक्त हैं परंतु पाठक को अपने में समेट लेती हैं लगता है यह हमारे लिए ही हैं, कुल मिलाकर महिलाओं की अंतर्दशा को उजागर करती हुई कविताएं हैं।
डा. सरोज सिंह कहती है कि कवयित्री ऋतन्धरा मिश्रा एक सशक्त रचनाकार हैं, जिनकी कविताओं में विषय वैविध्य है। स्त्रियों के अन्तर्मन से जब कविता फूटती है तो उसका आयाम बहुत व्यापक होता है।अपनी संजीवनी से वे उसे पोषित भी करती हैं।
डा. अर्चना पाण्डेय कहती है कि ऋतन्धरा की कविताएँ, कहानी की तरह प्रवाहमय हैं। इनकी सभी कविताएँ मैंने पढ़ी, एक सुखद अनुभूति हुई। ये अपनी अभिव्यक्ति को निरंतरता देने के लिए छन्दों की बाध्यता से परे होकर, छंदमुक्त आगे बढ़ती हैं।
वरिष्ठ कवयित्री देवयानी ऋतन्धरा मिश्रा जी की रचनाओं पर पैनी नजर डालते हुए कहती है कि आज की कविताओं में विवाहिता जो कविता है उसमें एक लाइन है,
कोई न थाम सका
उस सैलाब को
पूरी कविता का जैसे यही आधार है। पिता का चैखट विवाहिता को छोड़कर जाना ही पड़ता है। समाज,परम्परा नियम पर यह सैलाब, सैलाब ही है। औरत कविता मे लिखती हैं कि रौंधा सभी ने धरती की तरह, और एक वक्त पर फेंक दिया रुमाल की तरह यहा कहीं औरत की बेबसी है तो कहीं है हार। औरत जीवन से कवयित्री बहुत ही निराश है उदास है। निषिद्ध कविता मे भी एक राजकुमारी की एक राजकुमार के लिए तड़प है, छटपटाहट है। क्योकि प्रेम पाप है, भाव में डूबना निषिद्ध है खत लिखना भी मना है। यहां भी नारी व्यथा को कवयित्री ने जागृत किया है। मुखौटा कविता जीवन की चुनौती है। मन शीर्षक की कविता एक आजाद पंछी की तरह आकाश में उड़ना चाहती है। वो बंधन मुक्त होना चाहती है। जीवन की सच्ची तलखियों से दूर भाग जाना चाहती है। नारी वेदना ,उसकी व्यथा को उजागर करती है कविताएँ पाठक को भी अपने भाव मे समेट लेती है।
मंच पर प्रस्तुत की गयी ऋतन्धरा मिश्रा की रचनाओं की गूढ़ समीक्षा करती हुई वरिष्ठ लेखिका ’मीरा सिन्हा’ कहती है कि हमारे पास इनकी कुछ कविताएँ हैं जो कि नारी मन और नारी के बारे मे जानने का सशक्त माध्यम है पहली कविता नारी के दुलहन रुप की है जो लाल चुनरी मे दुसरे के घर जाती है पर उसके साथ परायों जैसा ही नही। कभी-कभी अमानवीय व्यवहार करते हैं जो किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है। दूसरी कविता सम्पूर्ण औरत के वजूद की है, जिसमें कठोरता, नम्रता, मोहब्बत, समर्पण, त्याग, सारी चीजें कूट कूट कर भरी है पर संसार उसकी कद्र नहीं करता है। तीसरी कविता निषिद्ध है। क्यों समाज मे स्त्री के लिए सब कुछ निषिद्ध है? यह कवियत्री का समाज से प्रश्न है चैथी कविता मुखौटे भी नारी के बारे में है। स्त्री जीवन भर बेटी, बहन, पत्नी, माँ के मुखौटे लगाए रहती हैं पर उसके अन्दर उसका स्वयं का व्यक्तित्व कहीं छुप जाता है। ऋतंधरा जी आज के समय की एक सशक्त हस्ताक्षर हैं ।
यह आयोजन महिला काव्य मंच पूर्वी उत्तर प्रदेश की अध्यक्ष मंजू पाण्डेय जी की अध्यक्षता में सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ।