छोड़ दो ये गुस्सा जी

इलाहाबाद महिला साहित्यकार मंच के तत्वावधान में गीतों और लोकगीतों की महफिल का आनलाइन आयोजन वरिष्ठ कवयित्री जया मोहन की अध्यक्षता में किया गया। इस काव्यगोष्ठी में रचना सक्सेना ने वाणी वंदना प्रस्तुत की,संचालन डा. नीलिमा मिश्रा और संयोजन ऋतन्धरा मिश्रा ने किया। जया मोहन ने चैती गाकर सब को भाव विभोर कर दिया।
परम सुहावन हो रामा राम घर अईहे
नवमी तिथि बड़ी है पावन
ऋतन्धरा जी ने.. 
आरजू बनकर शाम आई है कुछ इस तरह से बहार आई है जैसे कोई देहात से दुल्हन
शहर में पहली बार आई है
डा० नीलिमा मिश्रा ने गीत सुनाया:-
सुख का आँचल भेजो न 
नीलम बादल भेजो न।
मुझको नजर न लगे कोई 
ऐसा काजल भेजो न।।
महक जौनपुरी ने लेकगीत की प्रस्तुति देते हुऐ... 
चाट कटरा में चलकर खियाऐ दो पिया 
माल मे घुमाय दो पिया न
रचना सक्सेना ने... 
बन्नी के गाल गुलाबी रे 
हाय कसम शर्मा गयी 
रेनू मिश्रा जी ने... 
एजी एजी करते करते 
जी निकल न जाए जी 
छोड़ दो ये गुस्सा जी
कही जी पे न बन जाए जी।
इस काव्यगोष्ठी में सावन की छटा और भक्ति की गंगा भी बही। जया मोहन श्रीवास्तव, महक जौनपुरी, रचना सक्सेना, डा० नीलिमा मिश्रा, ऋतन्धरा मिश्रा और रेनू मिश्रा ने सुंदर लोकगीत प्रस्तुत करके कार्यक्रम को सफल बनाया।


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