गुजारी उम्र है किस्मत को आजमाने में
उठे जो हक की सदा बन के इस जमाने में !
रहे हैं सर वही जालिम तेरे निशाने में !
मिटा सकेगा न मेरा वजूद तू हरगिज !
नहीं है मर्जी-ए-रब जो हमें मिटाने में !
न कुछ मिला उसे तदबीर के बिना जिसने !
गुजारी उम्र है किस्मत को आजमाने में !
ये और बात समझ से परे रही लेकिन !
छिपी थी दिल की सदा लब के थरथराने में !
हकीकी इश्क इबादत से कम नहीं लोगों !
सुकूँ मिला है सदा दिल से दिल लगाने में !
मिलेगा तोड़ के दुनिया की सारी दीवारें !
जुनूँ वो जोश है बाकी तेरे दिवाने में !
चराग-ए-इश्क ‘कशिश’ तेरे काम आयेंगे !
वफा खुलूस की महफिल को जगमगाने में !