इस तरह ना खुद को रुसवा कीजिये
हसरतों का दिल से सौदा कीजिये !
आप ताजिर हैं तो ऐसा कीजिये !
मौसम-ए-उल्फत में सुर्खी आयेगी !
जख्म-ए-दिल को और गहरा कीजिये !
जब नहीं रिश्ता कोई है दरमियाँ !
याद बनकर भी न आया कीजिये !
गैर तो हैं गैर उनसे क्या गिला !
आप अपने हैं न धोखा कीजिये !
गैर की बाँहों में बाँहें डालकर !
इस तरह ना खुद को रुसवा कीजिये !
किसकी नजरों में हवस है क्या पता !
यूँ न सबको यार देखा कीजिये !
जिसमें नफरत का अंधेरा है सनम !
प्यार का उसमें उजाला कीजिये !
जिसके सीने में ‘कशिश’ दिल ही नहीं !
किसलिये उसकी तमन्ना कीजिये !