दीपावली है दीपों के त्योहार
दीपावली एक ऐसा त्योहार है, जिसका इंतजार सभी को वर्ष भर रहता है। प्रकाश का यह त्योहार जहाँ सभी के जीवन में धन-धान्य लाता है वहीं दीपावली के आगमन से कुछ दिनों पूर्व ही बाजार सज-धज जाते हैं और लोग खरीदारी के लिए निकल पड़ते हैं। बच्चों के लिए तो यह त्योहार विशेष रूप से कौतूहल का विषय होता है। नये-नये कपड़े, पटाखे और तरह-तरह की मिठाईयाँ उन्हें खुश कर देती हैं। सब जगह रंग-बिरंगे रोशनी देते बल्बों की लड़ियाँ और एक दूसरो को बधाई देते लोगों का दिखाई पड़ना सचमुच सुखद होता है। दीपावली पर्व, सभी समुदाय के लोग मिल जुलकर मनाते हैं। यही नहीं अब तो दीपावली की धूम विदेशों तक जा पहुंची है, तभी तो ब्रिटेन की संसद और अमेरिका के व्हाईट हाउस में भी लक्ष्मी-गणेश का पूजन करके और दीप जलाकर दीपावली मनाई जाने लगी है। दीपावली एक ऐसा भी त्योहार है, जिसमें घर के बच्चांे से लेकर बड़े-बूढ़े तक बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
दीपावली धार्मिक ढोंग और रूढ़ियों से दूर अपने आसपास फैले उजाले के प्रति आभार प्रकट करने का त्योहार है। इस त्योहार में अंधेरे से लड़ता प्रत्येक दीया समाज में यही उमंग भरता नज़र आता है कि हम जीवन के झंझावातों में भी अपने विवेक की लौ को न बुझने दें। कई बार देखने में आता है कि हमने कपड़े तो नए खरीद लिये और घर की बाहरी सजावट भी कर दी, पटाखे भी खूब ले आये लेकिन घर के अंदर की स्वच्छता की ओर ध्यान ही नहीं दिया। घर की पुताई की ओर ध्यान नहीं गया और कमरों में आलतू-फालतू चीजें इधर-उधर बिखरी पड़ी हंै। ध्यान रखें कि घर में लक्ष्मी बाहरी आडंबर देख कर नहीं आती। घर के अंदर भी स्वच्छता होनी चाहिए और स्वच्छता का महज दिखावा करके हम स्वयं को ही धोखा देते हैं।
घर की सफाई और साज-सज्जा का दीपावली के समय महत्व इसलिये और भी ज्यादा बढ़ जाता है क्यांेकि उस समय मेहमानों का आवागमन अधिक होता है। यदि बेमतलब की बिखरी चीजें किसी मालगोदाम सा अहसास करायें तो इसके लिए गृहिणी को ही शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। घर के लोगों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि दीपावली आने से पहले घर में रखे सभी रद्दी अखबार, टूटे बक्से, टूटी कुर्सियों, पुरानी बोतलें और जंग लगे डब्बों आदि को ज़रूरतमंद लोगों में बाट दंे। दीपावली खुषियों का त्योहार है लेकिन खुशियाँ मनाने का भी एक सलीका होता है। खुषी के क्षणों में अपनी संपन्नता का दिखावा करना उतना ही गलत है जितना कि अपनी खुशियों को दूसरों में न बांटना। बाहरी चमक दमक से सिर्फ आपको प्रषंसा ही मिल सकती है लेकिन दिल का सुकून नहीं। दीपावली पर आपसी संबंधों में मजबूती और मधुरता लाने के लिए उपहारों का आदान-प्रदान काफी होने लगा है, जो बुरा नहीं है। दीपावली के मौके पर दिये-लिये जाने वाले उपहारों की सार्थकता यही है कि इससे निजी और व्यावसायिक संबंध ज्यादा घनिष्ठ होते हैं। यदि आप उपहार ले रहे हंै तो न तो इसका अहसान जतायें और न ही उपहारों की कीमत पूछें। ख्याल रखें कि किसी को स्वार्थ या बदले की भावना से या कहीं से मिला पुराना उपहार न दें। दीपावली आतिशबाजी का भी त्योहार है। तेज आवाज़ जैसे फूटते पटाखों की चिंगारियाँ, हवा में उड़ते राकेट, फूल बरसाती फुलझड़ियाँ और बम जैसे धमाकेदार पटाखे बच्चों को खूब आनंदित करते हंै, लेकिन घर के बड़ों को ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे उनकी निगरानी में ही पटाखें चलायें। इस दिन बच्चे आग के शिकार हो जाते हैं। वैसे भी हमें बच्चों को समझाना चाहिए कि पटाखे और आतिशबाजी की वजह से षोर और वायु प्रदूषण जैसी समस्यायें होती हैं इसलिये इन्हें न प्रयोग में न लाया जाय। यदि बच्चे न मानें तो कुछ हल्के-फुल्के पटाखों से ही उन्हें काम चलाने के लिए समझाना चाहिए।
जुयें और षराब जैसी बुराईयों को दीपावली में शामिल कर हम अपनी इज्जत और आर्थिक संपन्नता को ही पलीता लगाते हैं। दीपावली दुव्र्यसनों को अपनाने का नहीं, छोड़ने का त्योहार है। अच्छा यही होगा कि हमें अपनी दीपावली को अच्छी और आनंदमयी बनाने के लिए इसमें कुछ नयापन लाना चाहिए और ऐसे नयेपन में मेहमानों की बढ़िया खातिरदारी के अलावा यदि अपने घर में गीत-संगीत जैसे कार्यक्रम जोड़े जाएं तो इस त्योहार का आनंद बढ़ जाता है।
परिवार के साथ इस दीपावली के त्योहार को और भी खूबसूरत और रोशन बनाने के लिए घर के हर सदस्य को अपना पूरा योगदान देना चाहिए। इसे अपना कर्तव्य समझना चाहिये। किसी एक सदस्य से परिवार नहीं बनता है। परिवार के सदस्यों के आपसी प्रेम, अपनेपन से ही दीपावली का यह त्योहार अपनी दीपक की रोशनी से सभी के जीवन को जगमग कर देता है क्योंकि हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हर दीपक में बाती नहीं होती बल्कि हर बाती में ज्योति होती है, जो हमें एक नयी रोशनी की तरफ अग्रसर करती है।