गणतंत्र दिवस और आज की प्रासंगिकता
- ईशान सिंह
गणतंत्र दिवस डोमिनियन से संप्रभुता के पायदान पर आने का दिवस है इसी दिन भारत अपने तौर-तरीके अर्थात संविधान के अनुरूप बनाए हुए नियमों पर चलने के लिए स्वतंत्र हुआ 2022 यानी इस वर्ष हम अपना 73 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं तथा भारत इसी वर्ष स्वतंत्रता के 75 वर्ष भी पूर्ण कर चुका है इसके चलते हम आजादी का अमृत महोत्सव को एक पर्व के रूप में भी मना रहे हैं।
अगर हम गणतंत्र के नियमों को देखें यानी हम किस आधार पर यह तय करेंगे कि कोई देश गणतंत्र है या नहीं है तो इसमें कुछ मुख्य पहलू यहां होंगे कि वह जनता से संबंधित होना चाहिए राज्य का प्रमुख चयनित होना चाहिए तथा किसी विशेषाधिकार वर्ग का आधिपत्य देश के संसाधन पर नहीं होना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 52 से 56 यह कहा भी गया है कि राज्य का प्रमुख राष्ट्रपति होगा जो लोकसभा और विधानसभा के प्रतिनिधियों द्वारा चयनित होगा।
गणतंत्र दिवस आखिर इतना महत्वपूर्ण क्यों है भारत जब 1950 के दशक में संविधान बना और लागू कर रहा था उस समय भारत के पास कई बड़ी चुनौतियां थी जैसे भुखमरी गरीबी सीमा सुरक्षा शिक्षा अन्य पर निर्भरता इत्यादि और इन सभी को पाने के लिए भारत को लोकतंत्रात्मक व्यवस्था बनाए रखने के साथ-साथ संघर्ष करना था। और इसी को ध्यान में रखकर भारतीय संविधान में राज्य के नीति निदेशक तत्वों में भारत की आकांक्षाओं को निर्देशित किया गया जिसमें आर्थिक सुरक्षा सामाजिक सुरक्षा इत्यादि विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि गणतंत्र दिवस भारत के भविष्य का मसौदा तय करने की तरफ एक शुरूआत है। आजादी के समय बेशक भारत की आकांक्षाएं मूलभूत थी लेकिन आजादी के 75 साल बाद समय दर समय आकांक्षाओं में भी परिवर्तन होते हुए दिखे आज की समस्याएं कई रूप में परिवर्तित अर्थात अब भुखमरी तथा अन्य निर्भरता प्रारंभिक शिक्षा कोई भी बड़ा मुद्दा नहीं रहा आधुनिक दौर की अन्य समस्याएं अब हमारे लिए एक चुनौती के रूप में उभरी है जैसे आज केंद्र राज्य के संबंध या विदेश नीतियां जैसे हाल ही में अफगानिस्तान पाकिस्तान और चीन को लेकर हुई समस्याएं सरकारों का आपस में तालमेल ना होना चुनाव में भाग लेने वाली प्रत्याशियों को समान अधिकार ना मिलना बेरोजगारी आर्थिक नीतियां प्रेस की स्वतंत्रता इसी के साथ में जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद इंटरनेट के अधिकार का हनन सोशल मीडिया के चलते आचार्य संहिता का नए रूप में उल्लंघन राज्य तथा राज्यपालों का टकराव महिलाओं का संसद में न्यूनतम भागीदारी जनसंख्या आरक्षण जैसे कई मुद्दे आज के भारत की बड़ी चुनौतियां बनकर उभरे हैं।
हाल ही के एक मुद्दे की चर्चा करें तो भारत इस बार जो गणतंत्र दिवस मना रहा है उसका विषय पदकपं/75 है, गणतंत्र दिवस में प्रस्तुत होने वाली झांकियों में पश्चिम बंगाल तथा तमिलनाडु की झांकियों को प्रस्तुत करने से मना कर दिया गया जिसके पीछे या तर्क दिया गया की इसकी एक सर्वसम्मति चयन प्रक्रिया होती है और इन मानकों पर यह झांकियां खरी नहीं उतरती है लेकिन राज्यों ने को अपना अपमान कहा और राजनीतिक तौर से भेदभाव का प्रश्न चिन्ह उठाया जिससे लोगों में राष्ट्रवाद की भावना आहत हुई। इसी के साथ पंजाब में प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर राजनीतिक टकराव की बातें सामने आई जिससे अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी प्रश्नचिन्ह उठा। ऐसे में गणतांत्रिक देश आज के समय अपने उद्देश्यों से कितनी खाई पर मौजूद है यह समाज की दृष्टि में जाहिर होने लगता है तथा देश की अव्यवस्था के रूप में परिवर्तित होता प्रतीत होता है।
भारत का संविधान मूल कर्तव्यों के जरिए हमें निर्देशित करता है कि भारत की सभी लोगों में समरसता और सामान भ्रातृत्व की भावना का विकास हो जो धर्म भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित भेदभाव से परे हो उन सभी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरूद्ध हो हम जितना संविधान उसके उद्देश्यों के अनुरूप कार्य करेंगे उतना ही गणतंत्र के समीप होते जायेंगे हमारे संविधान की प्रस्तावना में भी लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने की ओर अग्रसर है तथा अगर हमें इन सभी उद्देश्यों को प्राप्त करना है तो सभी सरकारों को आपसी सहमति से मिलजुल कर काम करना होगा सभी सामाजिक मुद्दों पर मिलकर काम करना होगा वह चाहे महिलाओं के मुद्दे हो या बेरोजगारी के मुद्दे हो या युवाओं की दिशा को लेकर तथा यह भी ध्यान देना होगा कि सरकारें संविधान तथा उसके उद्देश्यों के अनुरूप ही कार्य करें और इसी के साथ यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत सरकार संपूर्ण देश की सरकार है ना की किसी विशेष समुदाय की।