धरती पर शैतानी सभ्यता की जगह आध्यात्मिक सभ्यता स्थापित करनी है


- डा0 जगदीश गाँधी, शिक्षक

विश्व का हर क्षेत्र विज्ञान की नई-नई तकनीक से लाभान्वित हो रहा है। इंटरनेट के अन्तर्गत सोशल मीडिया ने विश्व में जैसा क्रांतिकारी परिवर्तन किया है, वैसा किसी भी अन्य साधनों ने नहीं किया। सोशल मीडिया विश्व के किसी भी कोने में बैठे विश्ववासी के मध्य संवाद का एक सशक्त माध्यम बन गया है। यह किसी भी सूचना को विश्व स्तर पर प्रकाशित-प्रचारित करने का सर्वसुलभ तथा सबसे सस्ता जरिया है। सोशल मीडिया सूचना का अपार सागर है। आज अरबों लोग विभिन्न सामाजिक कार्यों के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं।

हम इस विचार से पूरी तरह सहमत है कि सोशल मीडिया पर अपनी अज्ञानता पर पर्दा डाल कर हमेशा कुछ समाजोपयोगी सीखने की कोशिश करनी चाहिए। डिजिटल ट्रोलिंग एक ऐसा विषय है जिसे हमें अपने विवेक के द्वारा समझना चाहिए तथा स्वीकार करना चाहिए कि यदि हम किसी से सहमत नहीं हैं और कोई हमें नहीं देख रहा तो हम सोशल मीडिया पर कुछ भी कहने के अधिकारी नहीं हो जाते इसलिए सोशल मीडिया में अपनी चर्चा के दौरान हमको पूरी तरह से सभ्य, सुशील और संयमित रहना आवश्यक है। साथ ही किसी कार्य को करने के पहले उसके अन्तिम परिणाम पर विचार कर लेना चाहिए।

यदि धरती पर शैतानी सभ्यता की जगह आध्यात्मिक सभ्यता स्थापित करनी है तो इसके लिए हमें शिक्षा के द्वारा तीन क्षेत्रों को तराशना होगा। पहला क्षेत्र इस युग के अनुरूपशिक्षाहोनी चाहिए (अर्थात शिक्षा केवल भौतिक नहीं वरन् भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों की संतुलित शिक्षा), दूसरा क्षेत्र धर्म के मायने साधारणतया समझा जाता है कि मेरा धर्म, तेरा धर्म, उसका धर्म। धर्म के मायने- प्रेम और एकताहै। मनुष्य का एक ही कर्तव्य है सारी मानव जाति में प्रेम तथा एकता स्थापित करना।

तीसरा क्षेत्र है कानून और व्यवस्था। सारे विश्व में कानूनविहीनता बढ़ रही है। बच्चों को बचपन से कानून पालक तथा न्यायप्रिय बनने की सीख देनी चाहिए। हम सब संसारवासी कानून को तोड़ने वाले बनते जा रहे हैं। इसलिए अगर हमें समाज को व्यवस्थित देखना है तो हमें हमेशा कानून का पालन करना चाहिए। सामाजिक शिक्षा के द्वारा बालक में परिवार तथा समाज के प्रति संवेदनशीलता विकसित की जानी चाहिए। बच्चों को ऊँच-नीच तथा जात-पात के बन्धन से बचाना चाहिये।

सोशल मीडिया द्वारा हम विश्व के किसी भी देश में किसी कंपनी, संस्था या व्यक्ति से तुरंत संपर्क स्थापित कर सकते हैं। सोशल मीडिया ने संचार के क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है। अन्य माध्यमों की तुलना में सस्ता, तेज रफ्तार और अधिक सुविधाजनक होने के कारण सोशल मीडिया ने दुनिया भर के कार्यालयों और घरों में अपनी जगह बना ली है। सारे विश्व में आज विज्ञान, अर्थ व्यवस्था, प्रशासन, न्यायिक, मीडिया, राजनीति, अन्तरिक्ष, खेल, उद्योग, प्रबन्धन, कृषि, भूगर्भ विज्ञान, समाज सेवा, आध्यात्म, शिक्षा, चिकित्सा, तकनीकी, बैंकिग, सुरक्षा आदि सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों का बड़े ही बेहतर तथा योजनाबद्ध ढंग से विकास हो रहा है।

सोशल मीडिया ने आज सारे विश्व को एक सूत्र में जोड़ दिया है। नई पीढ़ी में सोशल मीडिया के द्वारा चैंट या चर्चा व्यापक रूप से लोकप्रिय है। यह एक बहुपयोगी गतिविधि है, जिसके द्वारा भौगोलिक रूप से दूर-दराज स्थानों पर बैठे व्यक्ति एक ही चैट सर्वर पर लॉग करकेकी-बोर्डके जरिये एक-दूसरे से चर्चा कर सकते हैं। सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों ने तो दुनिया में  धूम ही मचा दी है।

मानव जाति के कदम विनाश की ओर नहीं वरन् सृजन की ओर बढ़ने चाहिए। हमारा मानना है कियुद्ध के विचार पहले मनुष्य के मस्तिष्क में पैदा होते है अतः दुनियाँ से युद्धों को समाप्त करने के लिये हमें मनुष्य के मस्तिष्क में ही शान्ति के विचार उत्पन्न करने होंगे।शान्ति के विचार देने के लिए मनुष्य की सबसे श्रेष्ठ अवस्था बचपन को माना गया है। विश्व शान्ति, विश्व एकता एवं वसुधैव कुटुम्बकम् के विचारों को बचपन से ही प्रत्येक बालक-बालिका को ग्रहण कराने की आवश्यकता है ताकि आज के ये बालक-बालिका कल को बड़े होकर सभी की खुशहाली एवं उन्नति के लिए संलग्न रहते हुएवसुधैव कुटुम्बकम्के स्वप्न को साकार कर सके। इसलिए आज संसार के सभी बच्चों को प्रारम्भिक अवस्था से इस बात का संकल्प दिलाने की आवश्यकता है कि वे विश्व नागरिक बनकर उनके कदम विध्वंस और विनाश की ओर नहीं बल्कि विश्व एकता, विश्व शान्ति और सृजन की राह पर चलेंगे।

विकासशील जीवन केवल हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है वरन् कर्तव्य भी है। सारे ब्रह्याण्ड का ज्ञान-विज्ञान, सृजन, कला-साहित्य, संगीत, प्रकृति बोध, आनन्द, प्रसन्नता, आरोग्य, ओज, तेज, आभा, प्रकाश आदि सब कुछ मनुष्य के अन्दर है। मनुष्य को ही विश्व को विकास की ओर ले जाने का श्रेय जाता है तथा मनुष्य ही विश्व को विनाश की ओर ले जाने के लिए भी जिम्मेदार है। प्रति क्षण जीवन की अंतिम सांस तक प्रत्येक कार्य को प्रार्थनामय होकर करते हुए निरन्तर अपने अंदर की सुप्त शक्तियों को जागृत करना ही जीवन का उद्देश्य है।

हमारे जीवन का मंत्र होना चाहिए कि विकासशील तथा प्रगतिशील जीवन केवल हमारा जन्म सिद्ध

अधिकार ही है वरन् हमारा कर्तव्य भी है। सूचना क्रान्ति के इस युग में व्यापक विश्व समाज को विश्व एकता के विचारों से जोड़ने के लिए शिक्षा, मीडिया तथा समाज की भूमिका पहले की अपेक्षा और अधिक बढ़ गयी है। विश्व के दो अरब से अधिक बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए विश्व संसद, विश्व सरकार तथा विश्व न्यायालय के गठन के अभियान में शिक्षा, मीडिया तथा समाज की सक्रिय भूमिका निभाने के लिए मानव जाति सदैव ऋणी रहेगी।

संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव डा0 कोफी अन्नान ने कहा था कि ‘‘मानव इतिहास में 20वीं सदी सबसे खूनी तथा हिंसा की सदी रही है।’’ 20वीं सदी में विश्व भर में दो महायुद्धों तथा अनेक युद्धों की विनाश लीला का ये सब तण्डाव संकुचित राष्ट्रीयता के कारण हुआ है, जिसके लिए सबसे अधिक दोषी हमारी शिक्षा है। विश्व के सभी देशों के स्कूल अपने-अपने देश के बच्चों को अपने देश से प्रेम करने की शिक्षा तो देते हैं लेकिन शिक्षा के द्वारा सारे विश्व से प्रेम करना नहीं सिखाते हैं। यदि विश्व सुरक्षित रहेगा तभी देश सुरक्षित रहेंगे।

विश्व के बदलते हुए परिदृश्य को देखने हुए 21वीं सदी की शिक्षा का स्वरूप 20वीं सदी की शिक्षा से भिन्न होना चाहिए। 21वीं सदी की शिक्षा उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए जिससे सारी मानव जाति से प्रेम करने वाले विश्व नागरिक विकसित हो। इसलिए संसार के प्रत्येक देश को 21वीं सदी की शिक्षा को प्रत्येक बालक का दृष्टिकोण संकुचित राष्ट्रीयता से विकसित करके विश्वव्यापी बनाना चाहिए।

अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद जैसी विश्वव्यापी समस्याओं को केवल अन्तर्राष्ट्रीय कानून के ही द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है, युद्धों के द्वारा नहीं। इस हेतु सारे विश्व की एक प्रभावशाली कानून व्यवस्था बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान करके विश्व संसद के रूप में गठन शीघ्र करना होगा। विश्व में एकता एवं शांति स्थापित करने के लिए भारत को सारे विश्व की न्यायपूर्ण व्यवस्था बनाने के लिए कार्य करने के लिए आगे आना चाहिए। भारत के पास अपनी संस्कृति का वसुधैव कुटुम्बकम् का आदर्श तथा विश्व का सबसे अनूठा संविधान है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करने तथा विश्व एकता के लिए कार्य करने के लिए भारत के प्रत्येक नागरिक तथा राज्य को बाध्य किया गया है। आज विश्व में प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अभाव में अराजकता का मौहाल व्याप्त है। भारत को विश्व के सभी देशों से परामर्श करके उन्हें विश्व संसद, विश्व सरकार तथा विश्व न्यायालय के शीघ्र गठन के लिए सहमत करना चाहिए। शान्ति प्रिय देश भारत ही अपनी उदार संस्कृति, स्वर्णिम सभ्यता तथा अनूठे संविधान के बलबूते सारे विश्व में शान्ति स्थापित कर सकता है। शान्तिपूर्ण वातावरण में ही विश्व का विकास तथा मानव जाति का भविष्य सुरक्षित है। हमें वसुधैव कुटुम्बकम् - जय जगत के सार्वभौमिक विचार को संसार के प्रत्येक परिवार में पहुंचाने का सोशल मीडिया को एक सशक्त नीतिगत संवाद बनाना चाहिए। अभी नहीं तो फिर कभी नहीं।

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