संदोहन देवी मंदिर


- डी.एस. परिहार

ऐसी मान्यता जाता हैै कि पुराने लखनऊ मे सिंधुवन नामक एक प्राचीन स्थल था। इस वन में एक तालाब था, इस सिंधुवन में सात प्राचीन देवी मंदिर स्थापित थे जिनमे से कुछ काल के गर्त मे समा गये थे, संदोहन देवी मंदिर इनमे से एक था बताया जाता है कि पहले यहाँ स्थित एक कुंड के करीब एक प्राचीन मंदिर था करीब 400-500 साल पहले एक भक्त को स्वप्न आया कि मौजूदा मंदिर परिसर के कुंड में पिंडी स्वरूप में मां विराजी हैं। स्वप्न के बाद भक्तों ने कुंड से मां के पिंडी स्वरूप को निकाला और उसे स्थापित किया। इसके बाद यहां धीरे-धीरे अन्य प्रतिमाएं विराजीं, संदोहन देवी मंदिर में देवी के नौ रूपों की पूजा होती है। लखनऊ में भी देवी के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। इनमें सबसे खास पांच देवियां हैं, बड़ी काली मां, मनसा, संदोहन, मसानी और शीतला माता। कुशल कामना के लिए ये पांचों चैखटें जरूर चूमी जाती हैं। चैक चैपटियां में भीतर जाने पर मौजूद संदोहन देवी मंदिर लखनऊ के सात प्राचीन देवी मंदिरों में शुमार है।  मंदिर में हर छह महीने में सिर्फ नवरात्र के बाद पड़ने वाली पहली एकादशी पर मां संदोहन देवी के चरण दर्शन करवाए जाते हैं। यानी की साल में सिर्फ दो बार मां के चरणों के दर्शन किए जाते हैं। माता संदोहन देवी मंदिर मे मंदिर में मंगलवार, शनिवार को शाम के समय सुंदरकांड पाठ, शुक्रवार को देवी भजन समेत अन्य आयोजन होते हैं। मंदिर में माता के अलावा उद्गम कुंड, वैष्णो माता, काली माता, राधाकृष्ण, गणेश, हनुमद, भैरव, सरस्वती माता, संतोषी माता, शिव पार्वती, लक्ष्मी नारायण, राम दरबार, जगन्नाथ भगवान, नवग्रह, द्वादश ज्योर्तिलिंग, भीमकाय महादेव संग शनि भगवान भी विराजे हैं। चैपटिया के संदोहन देवी के चरणों के दर्शन के लिए श्रद्धालु छह महीने इंतजार करते है।  लखनऊ की इन सात देवी बहनें शहर के हर कोने से जनता की रक्षा करती हैं सात देवी मंदिरों का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। जो निम्न है 

बड़ी काली मंदिर:-

यह मंदिर चैक में दहला कुआं और बानवाली गली के बीच स्थित है। मंदिर का आसन बहुत ऊंचा है। कहते हैं कि कभी आदि गंगा गोमती इसके पास से बहती थी। मुख्य मंदिर के चारों तरफ कई छोटे-छोटे बड़े मंदिर हैं। इसमें एक का शिखर गया शैली में बना है। इसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। इसके पुजारी भी गया के ब्राह्मण रहे हैं। मंदिर में रजत वेदी पर लक्ष्मी और नारायण की हजार वर्ष से भी पुरानी चतुर्भुज युगल प्रतिमा है। कुछ विद्वान इसे नर-नारायण की मूर्ति मानते हैं, जो यहीं पुरातात्विक अवषेश में मिली थी।

मनसा देवी मंदिर:-

नागकुल की अधिष्ठात्री होने के कारण मनसा देवी रहस्यमयी व्यक्तित्व की स्वामिनी रही हैं। सराय माली खां में माहूलाल की चढ़ाई के पास मनसा देवी का प्राचीन मंदिर है। मंदिर के पास ऐतिहासिक जियालाल फाटक है, जो लखौरी ईंटों की दक्ष चुनाई के लिए दर्शनीय है।

संदोहन देवी मंदिर सिंधुवन लखनऊ का प्राचीन स्थल थाः- इस वन में एक तालाब था, जिसके अवषेश संदोहन देवी मंदिर के पास मिले थे। सरोवर के साथ मौर्यकालीन मूर्तियां भी मिली थीं। इनमें कुछ अब भी मंदिर परिसर में स्थापित हैं। संदोहन देवी मंदिर प्राचीन मंदिरों के ऊंचे आसन पर स्थापति नवनिर्मित भगवती मंदिर है। चैपटिया चैराहे पर स्थित इस मंदिर की सुंदर प्रतिमा दर्शनीय है। संदोहन जी लखनऊ के पांच देवी मंदिरों की रत्ना माला की मध्यमणि हैं।

देवी के इन नौ रूपों को समर्पित हैं। 

शीतला मंदिर:-

मेहंदीगंज में शीतला देवी का प्राचीन मंदिर है। कहते हैं कि लवकुश ने इस मंदिर की स्थापना की थी। तब यह गोमती इस मंदिर के पास से बहती थी। जल धारा का प्राचीन मार्ग यही था, जिसका प्रमाण दरियापुर मोहल्ला है यहां की प्रमुख प्रतिमा मध्य-काल के आक्रांताओं द्वारा भग्न है। यहां उसी की पिंडी की पूजा होती रही है। मंदिर के परिक्रमा पथ में दसवीं सदी की उमा महेश्वर की भग्न प्रतिमा है। इस मंदिर का पुनर्निर्माण बंजारों ने एक मठ के रूप में किया। बाद में कश्मीरी ब्राह्मण परिवारों ने इन्हें अपनी देवी मान लिया। होली के बाद अष्टमी को यहां ‘आठों का मेला’ भी लगता है।

मसानी देवी:-

मसानी देवीशिव श्मशान के देवता हैं तो शिवनी भी श्मशानी हैं। उन्हीं को मसानी देवी भी कहते है। सआदगंज में मसानी माता का प्राचीन मंदिर है। आज भी यहां फूलों के साथ कौड़ियां चढ़ती हैं। मध्यकाल में भगवती की यह गुप्तकालीन प्रतिमा कदम के नीचे कुएं से मिली थी। साल 1883 में पुजारी मंसादीन माली ने इस मंदिर की नई रूपरेखा तैयार की। यहां पीतल के प्रवेश द्वार पर कलात्मक गणपति और राजलक्ष्मी उकेरे गए हैं तो गंगा भी अपने वाहन मगर के साथ विराजमान हैं। इसके दूसरी ओर बना है, अवध का शाही राजचिन्ह, जलपरियों के हाथों में मुकुट। यहां बुधवार पूजा का दिन है। यहां लोग मनोकामना की चैकी भरते हैं और सात बुध जाकर उनकी चैखट पर फूल, पान, लौंग, बताशा और कौड़ी चावल से सजानी होती है। 

भुइयन देवी गणेशगंज:-

भुइयन देवी गणेशगंज 19वीं सदी की शुरूआत में बादशाह नसीरूद्दीन हैदर के शासन काल में इस क्षेत्र के जंगल मे पुराना गणेशगंज बस रहा था, तब इस जंगल के बीच एक मरघटा था। यहां खोदाई के वक्त पीपल के नीचे देवी की एक प्राचीन मूर्ति मिली। इसे छोटी-सी मठिया में स्थापित कर दिया गया। फिर इस भूमिया विग्रह को भुइयन देवी के नाम से पूजा जाने लगा। अवध में विष्णु पत्नी भू देवी अर्थात भुइयन देवी की उपासना की पुरानी परंपरा है। नया गणेशगंज के एक सरदार जी ने नए मंदिर का निर्माण करवाया था।

संकटा देवी:-

रानी कटरा के बड़ा शिवाला प्रांगण में बंदी माता की अत्यंत प्राचीन मूर्ति है। वंदनीय माता कही जाने वाली इस प्रतिभा के लोग प्रयत्न लाघव में वंदी माता कहने लगे। यहां संकटा देवी हैं और कश्मीरी ब्राह्मणों की ईष्ट देवी आद्या देवी की मूर्तियां भी। अवध में संकटा देवी हर क्षेत्र में मिलती हैं। यहां तक कि जब किसी मनोरथ के साथ सात सुहागिनों को बुलाया जाता है और खिलाया जाता है तो उस आयोजन को ‘संकटा की पिन्नी’ कहा जाता है।





 

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