महारानी लक्ष्मीबाई जी से झांसी के निवासियों की पहचान
- पंकज कुमार ‘भारती’ ब्यूरो चीफ, झांसी मंडल
अध्यक्ष, जिला पंचायत-जिला एकीकरण समिति झांसी पवन कुमार गौतम की अध्यक्षता में झांसी जनपद की महान विभूति वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई जी के जन्मदिवस समारोह का आयोजन विकास भवन सभागार में किया गया। समारोह का शुभारम्भ उपस्थित अतिथियों द्वारा महारानी लक्ष्मीबाई जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया, साथ ही एकीकरण समिति के अध्यक्ष द्वारा राष्ट्रीय अखंडता की शपथ दिलाई गई, तत्पश्चात अतिथियों का पुष्प भेंट कर स्वागत किया गया। जन्मदिवस समारोह में वरिष्ठ पत्रकार मोहन नेपाली ने अपना संबोधन प्रस्तुत करते हुए कहा, हमें महारानी लक्ष्मीबाई जी के त्याग एवं बलिदान के साथ-साथ आजादी की लड़ाई में उनके साथ देने वाले झांसी के अन्य वीर सपूतों का भी सम्मान एवं स्मरण करना चाहिए। हमें अपनी आने वाली पीढियां को महारानी लक्ष्मीबाई जी के त्याग एवं बलिदान की शिक्षा प्रदान करनी चाहिए जिससे हमारी पीढ़ियां इस महान वीरांगना को अपनी प्रेरणा स्रोत बना सकें। कार्यक्रम में भूतपूर्व महापौर रामतीर्थ सिंगल ने कहा, महारानी लक्ष्मीबाई के कारण हम सभी आजादी के स्वतंत्र वातावरण में श्वास लेने के हकदार हुए हैं। भारत के गौरवशाली इतिहास में जब-जब वीरांगनाओं का जिक्र किया जाएगा, महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता और पराक्रम हमेशा लोगों को प्रेरणा देते रहेंगे। कवियित्री सुभद्रा कुमारी चैहान ने अपनी रचना झांसी की रानी में इसी पराक्रम का जिक्र करते हुए लिखा था, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी। अंग्रेजी हुकूमत के दांत खट्टे करने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की आज पुण्यतिथि है। 18 जून सन् 1858 को अंग्रेजों से मुकाबला करते हुए रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुई थीं। हर साल 18 जून का दिन रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस के रूप में उनके शौर्य की याद दिलाता है। इस अवसर पर सदस्य विधान परिषद डाक्टर बाबूलाल तिवारी ने महारानी लक्ष्मी बाई जी के त्याग एवं बलिदान पर आधारित सुंदर पंक्तियां प्रस्तुत की। उन्होंने कहा, रानी लक्ष्मीबाई ने उस दौर में अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिए थे, जब युद्ध के लिए सिर्फ पुरूषों को योग्य माना जाता था। रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध कौशल के साथ उनका मातृत्व धर्म भी इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। इसके पश्चात सदस्य विधान परिषद श्रीमती रमा निरंजन ने अपने संबोधन में कहा कि महारानी लक्ष्मी बाई भारत की आजादी की लड़ाई में भाग करने वाली हमारे देश की प्रथम मातृशक्ति थीं, जिन्होंने महिलाओं को जीवन में आने वाली समस्याओं का डटकर सामना करने का साहस प्रदान किया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नायिका झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, जिन्होंने अपनी अंतिम सांस तक अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध जारी रखा। रानी लक्ष्मीबाई जी के जन्मोत्सव कार्यक्रम में अध्यक्ष, जिला एकीकरण समिति-जिला पंचायत, झांसी पवन कुमार गौतम ने कहा, एकीकरण समिति का मूल उद्देश्य प्रशासन एवं जनता के बीच में आपसी सौहार्द एवं सामंजस्य स्थापित करना है। उन्होंने कहा, झांसी के निवासियों की पहचान महारानी लक्ष्मीबाई जी से ही झांसी से बाहर जानी जाती है। भारत में एकीकरण समिति के तहत आपसी सौहार्द एवं सामान्य से झांसी में ही दृष्टिगत होता है। महारानी लक्ष्मीबाई जी को झांसी की रानी भी कहा जाता है, जो 1857 के भारतीय विद्रोह में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थीं। उन्हें भारत के सबसे महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक माना जाता है। वह साहस और वीरता की प्रतिमूर्ति थीं। उनका जन्म एक मराठा परिवार में हुआ था और वह अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण नाम थीं। रानी लक्ष्मी बाई को उनकी उत्कृष्ट बहादुरी के लिए जाना जाता था जो अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण नाम थी।
समारोह का संचालन समाज सेविका एवं शिक्षाविद डाक्टर नीति शास्त्री द्वारा किया गया।
महारानी लक्ष्मीबाई जी के जन्मदिवस के अवसर पर सिख धर्म गुरू ज्ञानी महेंद्र सिंह, मुख्य चिकित्सा अधिकारी सुधाकर पाण्डेय, जिला विकास अधिकारी सुनील कुमार, उपनिदेशक संस्कृति विभाग मनोज कुमार गौतम सहित एकीकरण समिति के अन्य पदाधिकारी एवं सदस्यगण तथा विकास भवन परिवार की अन्य अधिकारी एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे।