भृगु संहिता की भविष्यवाणी एक गुप्त विधि

- डा. डी. एस. परिहार

भृगु संहिता और नाड़ी ग्रन्थों मे परम्परागत ज्योतिष से भिन्न अनेक गुप्त सूत्रों का उपयोग किया जाता हैं। करीब विगत चालीस साल के ज्योतिष कैरियर मे मैं कुछ सूत्रों के प्राप्त करने मे सफल रहा हूं। जिनमे एक सूत्र 

भृगु पाद चक्र:-

दशा जिसकी खोज साठ के दशक मे स्व. तेजेन बोस ने एस्ट्रोलाॅजिकल मैगजीन के संपादक स्व. बी.वी. रमन के पु़त्र सूर्य नारायण राव के साथ की थी इस खोज मे लखनऊ के प्रसिद्ध भृगु शास्त्री प. परमेश्वर प्रसाद द्विवेदी जी ने भी सहयोग किया था। इस सूत्र पर मैंने एक विस्तृत लेख लिखा था। भारतीय प्रोग्रेसन का यह सूत्र नाड़ी ग्रन्थ, भृगु संहिता और पितृ जातकम् (मनु स्मृति) के दैनिक ग्रह गोचर पर आधारित है। मनुष्य का 1 वर्ष ईश्वर के 1 दिन के बराबर होता है। सूर्य का 1 अंश का गोचर जीवन के एक वर्ष के बराबर होता है। जबकि सूर्य एक वर्ष मे 12 राशियां 1 माह मे एक राशि यानि 30 अंश और एक दिन मे एक अंश चलता है। सूर्य की 1 अंश बराबर 1 दिन की गति पितृ जातकम् के अनुसार एक दिन बराबर एक वर्ष की होती है। यह सिद्धान्त भारतीय ज्योतिष की सभी दशाओं और गोचर का आधार है। सूर्य का इस गति से एक नक्षत्र चक्र्र का पर्याय मानव के जीवन के अंत को बताता है। अश्विनी से लेकर रेवती तक 27 नक्षत्रों मेेेेेेेेे सभी ग्रहों के नक्षत्र तीन तीन बार आते है। एक नक्षत्र पर्याय नौ नक्षत्रों का होता है। इन नौ नक्षत्रों मे क्र्रम से सभी नौ ग्रह आते है। 10 वें नक्षत्र से पुनः इसी  क्रम से नौ नक्षत्रों नौ ग्रह आते है नक्षत्रों का एक पर्याय 30, 30 अंश की चार राशियो यानि 120 अंशों पर पूर्ण होता है। भारतीय ज्योतिष मे यही मनुष्य की पूर्ण जीवन अवधि है।

ग्रह गोचर के नियम:-

1. इस विधि मे लग्न नक्षत्र चन्द्र राशि और इनके नक्षत्र स्वामी ग्रहों को बहुत महत्व दिया जाता है। 

2. चुंकि मंद गति के ग्रह एक राशि पर लंबी अवधि तक रहते है। अतः तीव्रगामी ग्रह चन्द्र बुध, शुक्र लग्न स्वामी  ग्रहों के राशि परिवर्तन और नक्षत्र परिवर्तनों की जीवन मे शुभ अशुभ धटनाओं मे बड़ी भूमिका होती है। 

3. मंद गति के ग्रह राहू शनि गुरू उनके नक्षत्र कोई ग्रहों का राशि परिवर्तन या ग्रहण योग को देखों।

4. चन्द्र नक्षत्र के स्वामी ग्रह और उसके चन्द्रमा से संबधों को देखो चन्द्रमा अशुभ स्थानगत नही होना चाहिये तथा लग्न व चन्द्रमा पापग्रस्त नही होना चाहिये।

5. अब जिस वस्तु व घटना के बारे मे जानना चाहते है। वह किस भाव मे आती है। वो भावेश जैसे मकान संबधी समस्या है। जो चतुर्थ भाव मे आती है। तो चतुर्थेश रोग हो तो षष्ठेश को विवाह हेतु सप्तमेश को लें। 

6. ग्रहों के प्राकृतिक कारकों का विश्लेषण करे जैसे सूूर्य पिता पुत्र व सरकार, कैरियर सरकारी जाॅब, चन्द्रमा से माता केतु से रोग, शुक्र से विवाह समृद्धि, व पुरूष जातक की पत्नी, गुरू से कन्या का पति व मंगल से संपति जायदाद और चोट दुर्घटना आप्रेशन शनि से आयु विदेश कंपनी से जाॅब। अंय कारकों हेतु विभिन्न ग्रहों का विस्तृत वर्णन ज्योतिष ग्रन्थों मे पाया जाता है। 

7. अब जिस वस्तु के बारे मे जानना है। वो किस भाव और किस ग्रह के अन्र्तगत आता है। जिस वर्ष के जमांक मे वो भाव तथा वो ग्रह जब परस्पर गहरा संबध  बनायेंगे उसी वर्ष वो घटना घटेगी जैसे जिस वर्ष के जंमाक मे विवाह कारक ग्रह शुभ विवाह के भाव सप्तम को देखे या सप्तम मे जाये या सप्तमेश से युत हो या सप्तमेश को देखे उसी वर्ष जातक का विवाह होगा इसी तरह यदि दशम भाव या दशमेश बली हो तो जिस वर्ष के जमांक मे नौकरी या जाॅब कारक ग्रह शनि रोजगार के भाव दशम को देखे या दशम मे जाये या दशमेश से युत हो या दशमेश को देखे उसी वर्ष जातक की नौकरी लगे यदि दशमेश त्रिक मे नीच का अस्त या वक्री हो तो जाॅब कारक ग्रह शनि व व्यापार कारक बुध जिस वर्ष व्यापार भाव सप्तम को देखे या सप्तम मे जाये या सप्तमेश से युत हो या सप्तमेश देखे उसी वर्ष जातक व्यापार शुरू करे। 

8. उपरोक्त नियम की अति आवश्यक शर्त यह है। कि जैसे विवाह का समय ज्ञान हेतु उसी वर्ष चन्द्रमा का भी सप्तमेश के नक्षत्र मे होना या सप्तमेश का चन्द्रमा के नक्षत्र मे होना या चन्द्र नक्षत्र स्वामी ग्रह का चन्द्रमा से या सप्तम भाव कारक शुक्र से भी संबध बनना भी अनिवार्य है। कभी कभी एक ही नियम मिल जताने पर नौकरी लगना या शादी हो जाती है। चन्द्र नक्षत्र स्वामी का चन्द्र व वस्तु या घटना के कारक ग्रह।

7. अब जैसे 27 वें वर्ष मे क्या घटेगा भृगु संहिता सूत्र के अनुसार मानव जीवन का 1 वर्ष ईश्वर के एक दिन के बराबर होता है। तो 27 दिन को जातक की जन्म तिथी मे जोड़ो मान लो किसी जातक का जंम 2 जुलाई 1974 को सुबह 8 बजकर 10 मिनट पर दिल्ली में हुआ है। तो 2 जुलाई मे 27 जो तो 29 जुलाई 1974 प्राप्त हुआ अब 29 जुलाई 1974 सुबह 8 बजकर 10 मिनट दिल्ली की जन्मपत्री बनीं यह 27 वंे वर्ष के वर्ष की घटनाओं का सटीक फल देगी भृगु संहिता की इस विधि का वर्णन फेट एंड फोर्चून पत्रिका के संपादक स्व मानिक चन्द्र जैन ने अपनी कई पुस्तकों जैसे कार्मिक कन्ट्रोल प्लेनेट मे किया है। यही विधि मुझे लखनऊ के नक्षत्रवाणी पत्रिका के संपादक तथा नक्षत्रवाणी पंचाग के निर्माता श्री राधेेेेेेेेेेेेे श्याम शास्त्री जी ने मुझे बतलाई थी उनके अनुसार प्रतापगढ की भृगु संहिता के पंडित जी सूर्य नारायण मिश्रा के पुत्र कई वर्षों तक उनके मकान मे निःशुल्क रहे थे वो भी कहीं-कहीं इस विधि का प्रयोग करते थे श्री शास्त्री जी ने मृझे भृगु संहिता के कई उपचार मंत्र भी दिये थे प्रस्तुत विषय पर एक सारगर्भित लेख श्री अनिल अग्रवाल नामक ज्योतिषी ने अपने गुरू एस गणेश जी द्वारा प्राप्त ज्ञान के आधार पर एक्सप्रेस स्टार टेली मैग्जीन के जुलाई 2015 के अंक मे लिखा था।



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