पाठा के गांधी पाठा की पथरीली जिंदगी के सुरों को टयून करने का अभिनव प्रयास कर रहे
मुख्यालय के रानीपुर स्थित अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान में चल रहा है पाठा की वनवासी बालिकाओं का 35 दिवसीय व्यक्तित्व विकास शिविर
संस्कृति मंत्रालय की ओर से कथक व नाटय प्रस्तुति की दी जा रही है ट्रेनिंग
2 जून की शाम को होगी भारत जननी परिसर में वनवासियों के राम और कथक नृत्य में तीन ताल के साथ ठुमरी की प्रस्तुति
- संदीप रिछारिया
जिस इलाके की कई पीढ़ियों ने पेट की आग को शांत करने के लिए बेगार के साथ बंधक जिंदगी जी हो,जहां पर पुलिस और डाकुओं के शोषण के शिकार आज भी अपनी कहानियां सुनाते दिखाई पड़ते हों, उनकी नई पीढी की जिंदगी को सुखमय, सुशिक्षित व सुसंस्कृत बनाने के लिए चित्रकूट में पाठा के गांधी गोपाल भाई नये सिरे से उनके सुरों को टयून करने का अभिनव प्रयोग कर रहे हैं।
भगवान राम की पहुनाई करने वाले कोल आादिवासियों की पीढी के व्यक्तित्व को बदलने का काम अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के मुख्य कार्यालय भारत जननी परिसर में इन दिनों चल रहा है। पाठा के जंगलों के गांव से आईं 35 किशोरियों को सुखमय जीवन जीने की कला सिखाने काम एबीएसएसएस के संस्थापक गोपाल भाईं उत्साह, उमंग और उल्लास के साथ कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि यह शिविर 35 बेटियों के साथ 5 मई को यूके के अग्रवाल फाउंडेशन के सहयोग से प्रारंभ किया गया था। इस शिविर में उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग तकनीकी सहयोग कर रहा है। विभाग की ओर से बेटियों को कथक सिखाने के लिए उदीयमान कथक कलाकार आकांक्षा पांडेय व नाटक सिखाने के लिए सिद्धहस्त कलाकार श्रीमती रोजी मिश्र आई हुई हैं। 2 जून को शाम पांच बजे से सात बजे तक भारत जननी परिसर के स्टेज पर बालिकायें वनवासियों के राम की नाटय प्रस्तुति देने के साथ ही कथक नृत्य में तीन ताल व ठुमरी पर अपनी प्रस्तुति देंगी।
उन्होंने बताया कि शिविर में हाईस्कूल से लेकर स्नातक तक की बेटियां भाग ले रही हैं। हमारा उद्देश्य उनमें सुखमय और स्वस्थ जीवन जीने की कला विकसित है। हम मुख्य रूप से उनमें अनुशासित जीवन जीने के लक्षण पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि यह भविष्य की मायें हैं, इसलिये हम इन्हें व्यवस्थित दिनचर्या से बांधनेे का काम कर रहे हैं ताकि उनकी संतान भी व्यवस्थित दिनचर्या में बंधकर देश के सुयोग्य नागरिक बन देश के उत्थान में सहयोग करें। शिविर के दौरान किशोरियों की दिनचर्या के बारे में बताते हुये कहा कि सभी को सुबह पांच बजे उठा दिया जाता है। इसके बाद वे साढे पांच बजे आकर हवन और पूजन के साथ प्रार्थना करती हैं। इस दौरान प्रेरणा गीत, ग्राम गीत और प्रेरणास्पद वाक्यों को उच्चारण करती हैं। इसके बाद उनकी नाटय की क्लास शुरू होती है। इसके साथ ही इन्डोर गेम्स, स्वाध्याय, संगीत गायन, वादन व समाचार पत्र पाठन के साथ अन्य प्रस्तुतियां भी होती है। श्रमदान के रूप में भागवत वाटिका के पौधों की देखभाल व परिसर में सफाई इत्यादि का काम होता है। दोपहर में विश्राम के साथ ही शाम के सत्र में कथक की ट्रेनिंग कु. आकांक्षा पांडेय कराती हैं। शाम को बेटियां अपनी-अपनी तरह की विभिन्न प्रस्तुतियां देती हैं।
गांवों से आई विभिन्न बेटियों ने बताया कि घरों में उनके जीवन में अनुशासन नही था। यहां पर आकर नई चीजें सीखने को मिल रही हैं। अनुशासन का महत्व भी समझने मे आ रहा है। आगे घर जाकर भी हम लोग अनुशासित जीवन जीने का प्रयास करेंगे। इस दौरान संस्थान के कर्ताधर्ता राष्ट्रदीप सभी व्यवस्थाओं को देखने का काम कर रहे हैं।