चित्रकूट को देश के पहले यूनेस्को ग्लोबल धरोहर पार्क के रूप में विकसित करने की पहल
- 15 साल पहले चित्रकूट के जानकीकुंड में पत्थरों से प्राप्त कर चुकके हैं 160 करोड़ साल पुराना जीवाश्म
- धर्म आध्यात्म और वैज्ञानिकता का अतभुद संगम बनेगा जियो ग्लोबल पार्क
- 1 से 3 जुलाई को दीनदयाल रिसर्च इंस्टीट्यूट में होगी कार्यशाला
- दोनों प्रदेशों के अधिकारियों व स्थानीय लोगों के साथ मिलकर बनाई जाएगी विशेष रणनीति
संदीप रिछारिया
मानव जीवन की आदि स्थली चित्रकूट को आध्यात्म व वैज्ञानिकता के आवरण में ढालकर विश्व स्तरीय पर्यटन स्थल घोषित कराने के दिशा में अब द सोसायटी आफ अर्थ साइंटिस्ट ने कदम आगे बढाया है। देश भर से आने वाले जीयोलॉजी के साथ अन्य विषयों के विशेषज्ञ एवं स्थानीय प्रबुद्वजन व विश्वविद्यालयों के एक्सपर्ट के साथ 1 से लेकर 3 जुलाई तक विशेष मंथन का कार्यक्रम दीन दयाल रिसर्च इंस्टीट्यूट आरोग्यधाम के सभागार में चलेगा। इस दौरान एक्सपर्ट को यहां के स्थानों का भ्रमण भी कराया जाएगा। यह बातें लखनउ से आये द सोसायटी आफ अर्थ साइंटिस्ट के सचिव डा0 अनिल त्रिपाठी ने कहीं।
उन्होंने बताया कि अभी विश्व में यूनेस्को द्वारा पोषित 48 देशों में 213 ग्लाबल जियो पार्क हैं। लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में एक भी नहीं हैं। उन्होेंनें कहा कि विश्व की आदि सभ्यता की निशानियां चित्रकूट में पुराणों में मिलती हैं, लेकिन वैज्ञानिकता के कारण इसे मानने से लोग इंकार करते हैं। वर्ष 2012 में यहां पर स्वीडन से 40 वैज्ञानिकों का दल आया। उनके साथ हिंदुस्तान के भी वैज्ञानिक थे। उन्होंने यहां पर जानकीकुंड में एक पत्थर के टुकडे पर मिले जब शैवाल पर वैज्ञानिक शोध किया तो पता चला कि यह 170 करोड़ साल पुराना है। वैज्ञानिकों के दल ने माना कि विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता व संस्कृति चित्रकूट में जन्मी थी। यह पूरी रिपोर्ट विश्व की सबसे बड़ी जनरल नेचर में भी छापी गई थी। लेकिन दुखद है कि इसके बाद सरकारों ने ध्यान नहीं दिया।
उन्होंने बताया कि अब हम लोग इसे ग्लोबल ईको बिलेज बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। इसमें दोेनों प्रदेशों के अधिकारी और विशेया लोग तीन दिनों तक यह मंथन करेंगे कि चित्रकूट का सम्पूर्ण और समावेशी विकास किस प्रकार से हो, जिससे यहां की पारिस्थितिकी और प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान न हो।
आयोजन सचिव पर्यावरण विद डा0 अश्विनी अवस्थी ने कहा कि चित्रकूट अनादि है। यहां की जैव विविधता दूूसरे धर्म स्थलों से अलग होकर इसे विशेष बनाती हैं श्री कामदगिरि परिक्रमा में इस बात को सिद्व करते दिखाई देते हैं कि यहां की उर्जा विशेष है, जो व्यक्ति को आनंद से भर देती है। यहां पर हम प्रकृति के साथ मिलकर विकास की इबारत लिखेंगे, जिससे न केवल यहां की संस्कृति व सभ्यता में बढोत्तरी होगी इसके साथ ही स्थानीय तौर पर रोजगार मिलेगा। उन्होंने कहा कि रहीम दास जी का दोहा है कि जेहि पर विपदा परत है सो आवत यहि देश का वास्तविक अर्थ है जो भी यहां पर आया वह और भी ज्यादा शक्तिशाली और लोकप्रिय हो गया। इसका उदाहरण भारत रत्न नानाजी देशमुख व जगद्गुरू रामभद्राचार्य जी महराज हैं।
समाजसेवी आनंद पटेल ने कहा कि चित्रकूट वह पुण्य भूमि हैं। जहां सबसे पहले त्रिदेवों ने मंत्रणा कर सृष्टि का आरंभ किया। भगवान राम चित्रकूट की क्यों आये, यह भी शोध का विषय है। चित्रकूट के ऋषि मुनियों का ज्ञान अपरिमित था। इसका एक नहीं कई प्रमाण हैं। उन्होंने ऋषि सरभंगा का जिक्र करते हुये कहा कि उन्होंने राम के आगमन के लिए एक युग तक प्रतीक्षा की, जबकि महराज इंद्र को उन्होंने अपने आश्रम में विश्राम करने को कह दिया था। इसी धरती की सबसे बड़ी विशेषता है यहां पर वैदिक धर्म के तीनोें आधार स्तम्भ शैव शाक्त और वैष्णव एक साथ पुष्पित और पल्लिवत होते हैं। इस दौरान डा0 अनिल कुमार मौजूद रहे।