नाड़ी पाॅमिस्ट्री मे ग्रहों का गोचर

- डी.एस. परिहार

यह लेख नाड़ी दुर्लभ और अप्राप्य भृगु संहिता व नाड़ी ग्रन्थों मे वर्णित हस्तरेखा के सूत्रों पर आधारित है। इन सूत्रों मे हस्तरेखा के आधार पर ग्रहों के गोचर से भविष्यवाणियां करने का वर्णन है पाॅमिस्टी और एस्ट्रोलोॅजी दोनों ही अध्यात्म विद्या के ही अंग है। नाड़ी एस्ट्रोलाॅजी के सारे सूत्र समान रूप से हस्तरेखा पर भी लागू होते है। नाड़ी पाॅमिस्ट्री के अनुसार हाथ मे राशियों की स्थिति निम्नलिखित स्थानों पर होती है।

मेष:- गुरू पर्वत के नीचे जीवन रेखा के प्रारंभ क्षेेेेेेेत्र पर।

वृष:- मस्तक रेखा के प्रारंभ क्षेेेेेेेत्र के नीचे।

मिथुन:- सूर्य पर्वत से सटा बुध माउंट का केन्द्रीय भाग।

कर्क:- सूर्य और बुध पर्वत के मध्य का भाग

सिंह:- सूर्य पर्वत

कन्या:- बुध पर्वत का वाह्म व निम्न भाग।

तुला:- शुक्र का केन्द्रीय भाग

वृश्चिक:-जीवन रेखा के निचले भाग के बाहर व मणिबंध के उपर का क्षेत्र निचला चन्द्र पर्वतीय क्षेत्र।

धनु:- गुरू पर्वत का बाहरी भाग। 

मकर:- शनि पर्वत का सूर्य पर्वत से सटा भाग मकर है। 

कुंभ:- शनि पर्वत का गुरू पर्वत से सटा भाग कुंभ है।

मीन:- गुरू पर्वत का शनि पर्वत से सटा भाग मीन है। 

किसी पर्वत के जिस भाग पर कोई शुभ या अशुभ चिन्ह है उस भाग की राशि मे शुभ ग्रह या अशुभ ग्रह जमांक मे स्थित होता है नाड़ी शास्त्र के अनुसार उस राशि से त्रिकोण राशि मे जब कोई शुभ गुरू, शुक्र बुध गोचर करेगा तो वह शुभ लाभकारी घटना घटेगी या उस ग्रह से संबधित वस्तुओं का जातक का लाभ होगा और अशुभ ग्रह शनि राहू केतु का गोचर जातक को हानि रोग दुर्भाग्य मुकदमा पतन घाटा देगा मित्र ग्रह का गोचर लाभ देगा और शत्रु ग्रहों का गोचर हानि देगा नाड़ी ज्योतिष मे मंद गति के ग्रह गुरू शनि व राहू केतु जीवन मे महत्वपूर्ण घटनाओं को घटित करते है जैसे सूर्य से सटे शनि पर्वत पर यदि वर्ग का शुभ चिन्ह स्थित है। यह मकर राशि का क्षेत्र है। अतः जमांक मे मकर राशि मे कोई शुभ बैठा होगा है। जब मकर राशि से त्रिकोण राशि (वृष, कन्या या मकर) से गुरू गोचर करेगा तो जातक को वर्ग चिन्ह का शुभ फल मिलेगा शनि का वर्ग जीवन मे आई प्राण घातक दुर्घटना या कठिन रोग से रोग जातक की रक्षा करता है। वर्तमान मे अप्रैल 24 से अप्रैल 25 के मध्य गुरू वृष राशि से निकल रहा है। इस काल मे जातक पर गंभीर रोग या दुर्घटना होगी परन्तु गुरू का गोचर जातक की जान बचा लेगा नाड़ी ज्योतिष मे गोचर मे गुरू, शनि राहू केतु इन चार ग्रहों का गोचर का ही महत्व है। नाड़ी ज्योतिष मे जंमस्थ ग्रहों से ग्रह गोचर को लिया जाता है। (धु्रव नाड़ी) गुरू 12 राशियों मे 12 वर्ष मे चलता है। शनि का राशि चक्र 30 वर्ष का होता है। शनि एक राशि मे ढाई वर्ष (30 माह रहता है।) तथा राहू और केतु 12 राशियों मे गोचर 18 वर्ष मे पूरा करता है। राहू केतु एक राशि मे डेढ वर्ष यानि 18 माह रहते हैं। (भृगु नाड़ी) पंचाग से व ज्योतिष ग्रन्थों से गोचर का विस्तृत विवरण प्राप्त किया जा सकता है।

शुभ व अशुभ चिन्ह:रु शुभ चिन्ह पर्वत के स्वामी ग्रह या किसी रेखा के स्वामी ग्रह के मित्र ग्रहो और प्राकृतिक शुभ ग्रहों जैसे गुरू, शुक्र बुध का बताता है बली चन्द्र शुभ और निर्बल चन्द्र अशुभ फल देता है

अशुभ चिन्द्र पाप ग्रहों, सूर्य मंगल शनि राहू केतु के प्रतीक है। हर शुुभ अशुभ चिन्ह अलग अलग शुभ और अशुभ ग्रहों का प्रतीक है।

शुभ चिन्ह-नक्षत्र या वर्ग बिलकुल सीधी रेखा सीधा या उल्टा अर्ध चन्द्र या प्रिन्ट मे श्वेत, धब्बे सीधा त्रिभुज त्रिशूल तिराहा जैसी रेखा मछली कमल उल्टा त्रिभुज सीप नेत्र 

अशुभ चिन्ह:- टेढा क्रास तिल व धब्बे, वर्ग, क्रास आड़ी रेखा टूटी रेखा सर्पाकार रेखा दो मँुही रेखा जाली चैराहा, वी शेप चिंह, कोण, जाली या दोराहा। जंजीरवत रेखायें झब्बेदार रेखा अंय शुभ व अशुभ चिन्हों के लिये हस्तरेखा के ग्रन्थ देखें।




 

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