झांसी में शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन हुआ

विष्णु प्रजापति छायाकर झांसी की विशेष रिर्पोट

भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति एवं द्वितीय राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के अवसर पर प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस पूरे देश में मनाया जाता है। डा. राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था। इस अवसर पर संघर्ष सेवा समिति द्वारा राजकीय संग्रहालय में शिक्षकों के सम्मान समारोह का भव्य आयोजन किया गया। इस सम्मान समारोह में लगभग 170 शिक्षकों को उत्कृष्ट सेवा हेतु सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मुकेश पांडे एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य डा. नरेंद्र सिंह सेंगर एवं वित्त लेखाधिकारी अजीत कुमार द्विवेदी उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता सेवानिवृत शिक्षक कल्याण परिषद के प्रांतीय कार्यकारिणी सदस्य शंभूदयाल यादव ने की। सर्वप्रथम कार्यक्रम आयोजन डा. संदीप सरावगी, सह आयोजक लखन लाल सक्सेना एवं अतिथियों द्वारा सर्वपल्ली राधाकृष्णन एवं प्रथम देव श्री गणेश की मूर्ति पर माल्यार्पण का दीप प्रज्वलित किया गया। आगे के क्रम में आयोजक मंडल द्वारा अतिथियों को सम्मानित करते हुए उनका माल्यार्पण कर शाल पहनाया गया एवं स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। तत्पश्चात रिवाल्यूशन डांस अकैडमी के छात्र-छात्राओं द्वारा गणेश वंदना की सुंदर प्रस्तुति की गई। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मुकेश पांडे ने सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन वृतांत पर प्रकाश डालते हुए कहा डा. राधाकृष्णन की पहचान सदैव एक शिक्षाविद के रूप में रही प्रत्येक शिक्षक का कार्य है वह देश के युवाओं को सुसंस्कृत और शिक्षित कर उन्हें देश विकास के मार्ग में प्रशस्त करें। आज हम 21वीं सदी में जीवन यापन कर रहे हैं प्राचीन समय में हमारा देश श्रेष्ठ देशों में एक था मेरा मानना है भारत जब अपनी आजादी के 100 वर्ष पूर्ण कर लेगा तो विकसित देशों में शीर्ष स्थान पर होगा। वर्तमान में हमारे देश की जनसंख्या 140 करोड़ है जिसमें 60 प्रतिशत के आस-पास युवा है यही युवा हमारे देश के कर्णधार हैं इन्हें योग्य बनाने की जिम्मेदारी हम जैसे शिक्षकों की ही है। साथ ही उन्होंने संघर्ष सेवा समिति के संस्थापक डा. संदीप की सराहना करते हुए कहा समाज सेवा के क्षेत्र में डा. संदीप उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं मैं उन्हें इस हेतु बधाई और धन्यवाद देता हूं एवं उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामना करता हूं। आगे विक्रम में वित्त लेखा अधिकारी अजीत कुमार ने कबीर दास के दोहे के साथ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, कुमति कीच चेला भरा, गुरू ज्ञान जल होय। जनम-जनम का मोरचा, पल में डारे धोया।। अर्थात छात्र जब शिक्षा के मंदिर में प्रवेश करता है तब उसके दिमाग में कई बातें होती हैं जिसमें कुछ सार्थक और कुछ निरर्थक भी होती हैं लेकिन एक गुरू अपने ज्ञान से सार्थक चीजों को विकसित कर निरर्थक बातों को छात्र-छात्राओं के मन से निकालने का कार्य करता है। साथ ही उन्होंने महान शिक्षाविद, वैज्ञानिक एवं राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की जीवन वृतांत के एक प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए कहा जब डा. कलाम को राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित किया गया उस समय उनसे पूछा गया कि वे अतिथियों के रूप में किसे बुलाना चाहते हैं तो उन्होंने कहा मुझे इस योग्य बनाने में जितने भी शिक्षकों का योगदान रहा है आप उन्हें आमंत्रण पत्र भेज दें। ऐसे योग्य लोग जिन्होंने शिक्षकों का हमेशा सम्मान किया है वे अपने जीवन के उच्च शिखर पर अवश्य पहुंचते हैं। आगे के क्रम में महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य डा. नरेंद्र सिंह सेंगर ने अपने गुरू जी की बात याद कर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि दो पेशे सबसे अच्छे माने जाते हैं एक शिक्षक और दूसरा चिकित्सक का, सौभाग्य से मैं दोनों ही पेशों पर कार्य कर रहा हूँ शिक्षक से अच्छा व्यवसाय कुछ नहीं होता। मुझे शिक्षकों से यह ज्ञान मिला कि जिसका चरित्र बिगड़ गया उसका पूरा जीवन व्यर्थ है और जीवन को सफल बनाने का एक मूल मंत्र है कड़ी मेहनत पक्का इरादा, दूर दृष्टि और अनुशासन। आज के समय में देश में सर्वाधिक आवश्यकता सामाजिक विज्ञान की है क्योंकि हमारे देश में आज भी सिविल सैंस की कमी है, हमारे शिक्षकों को इस और भी ध्यान देना चाहिए। कार्यक्रम आयोजन डा. संदीप ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा मेरा मानना है चिकित्सक और शिक्षक आज के समय के साक्षात भगवानों के अंश हैं। आज मेरे अंदर जो समाज सेवा की भावना जागृत हुई है इसके पीछे मेरी प्रथम गुरू मेरी मां एवं शिक्षकों का विशेष योगदान है। हर व्यक्ति के सफल जीवन में उसके शिक्षक का विशेष योगदान होता है इसके लिए आवश्यक नहीं कि हमारा शिक्षक हमसे उम्र में बड़ा हो हमें कहीं से भी कोई अच्छा ज्ञान मिल रहा हो तो हमें ग्रहण कर लेना चाहिए और जितना हो सके अपनी सामर्थ के अनुसार समाज सेवा के कार्य अवश्य करना चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षक महासंघ के कार्यकारी अध्यक्ष मातादीन द्विवेदी ने संबोधित करते हुए कहा व्यक्ति के जीवन में शिक्षा सबसे आवश्यक है उससे आवश्यक है कि हमें किन शिक्षकों के संरक्षण में रहना चाहिए। आज के समय में आधुनिकता की चमक में हम संस्कारों को भूलते जा रहे हैं छात्र-छात्राएं अपने गुरूओं का सम्मान नहीं करते घर पर अपने माता-पिता को उचित सम्मान नहीं देते यह चिंता का विषय है एक शिक्षक के रूप में हमें अपने छात्र-छात्राओं और अभिभावक के रूप में अपने बच्चों को सुसंस्कृत करना बहुत आवश्यक है। राष्ट्रीय शिक्षक महासंघ के संरक्षक राम लखन भार्गव ने संबोधित करते हुए कहा एक शिक्षक का मुख्य कार्य छात्र को शिक्षित करने से पहले सुसंस्कृत और अनुशासित करना है यदि किसी व्यक्ति की जीवन में संस्कार और अनुशासन की कमी है तो वह कभी सफल नहीं हो सकता। कार्यक्रम के मध्य में राधा प्रजापति अंतरराष्ट्रीय बुंदेली दल द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की गई जिसकी सभी ने सराहना की। आगे सम्मान के क्रम में शिक्षकों का माल्यार्पण कर उन्हें मोमेंटो एवं श्रीफल भेंट किया गया। शिक्षा क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु छक्की लाल साहू, अरविंद कुमार तिवारी, भाग्य चंद्र तिवारी, हरिराम खरे, राम लखन भार्गव, मातादीन द्विवेदी, लखन लाल सक्सेना, दशरथ रजक, आसाराम रायकवार, अर्चना गुप्ता, विशाल गुप्ता, दीपा यादव, मोहम्मद हसन अंसारी, संजना गुप्ता, अभय अग्रवाल, भावना भार्गव, वीरेंद्र सिंह चैधरी, प्रद्युम्न दुबे, लीला देवी, लालाराम, बृजकिशोर यादव, कल्याण घोष, भारत सिंह सेंगर, नारायण दास लोधी, दशरथ राजपूत, अलका खरे, लक्ष्मी घोष, लाल दीवान यादव, दीन मंसूरी, जितेंद्र यादव, संजय प्रजापति, अनीता कन्नौजिया एवं नीलम त्रिपाठी आदि को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन पवन तूफान एवं आभार लखन लाल सक्सेना ने व्यक्त किया।



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