दीपावली के अगले दिन मोनिया नृत्य की परंपरा
- राजेन्द्र कुमार
बुंदेलखंड के जनपद झांसी में दीपावली के अगले दिन मोनिया नृत्य की परंपरा है। इसमें युवाओं की टोलियां पैरों में घुंघरू बांधकर हाथों में लाठियां लेकर घुंघरू की छन-छन आहट और लाठियां की खटखट की जुगलबंदी के बीच यह लोक नृत्य प्रस्तुत करते हैं। डेढ़ दशक पहले मोनियों की कई टोलियां शहर की गली-गली में प्रदर्शन करती थी, लेकिन अब गिनती में ही यह टोलिया नजर आती है। कई नियमों और अनुशासन में बंधकर र्मोनिया नर्तक परेवा के दिन गांव के मंदिर में जाकर मौन व्रत धारण करते हैं, इसके बाद यह टोलिया 12 गांव में जाकर नृत्य करते हैं।
इन्हें सूर्यास्त से पहले अपने गांव लौटना पड़ता है, मोनिया नृत्य को दिवाली नृत्य भी कहते हैं। बुंदेलखंड की संस्कृति की जानकारी के मुताबिक मोनिया नित्य समूह को दिशा निर्देश देने के लिए बरेदी होता है। जो बुंदेली लोकगीत गाता है। इसके चलती मोनिया नृत्य को बरेदी नृत्य भी कहते हैं। इस लोक नृत्य के माध्यम से युवा गायों के संरक्षण और संवर्धन का संदेश देते हैं। वहीं महिलाएं मोनिया नृत्य करने वालों को दक्षिणा में दूध-दही और दक्षिणा मैं पैसा देती हैं। बताते चले कि बुंदेलखंड में मोनिया नृत्य का बहुत बड़ा महत्व है। मोनिया नृत्य के दौरान बुंदेली गीत गये जाते हैं। इनमें श्री कबीर दास मीरा के काव्य शामिल है, प्रमुख गीतों में श्रीयां बरेली कर-कर छोड़ो है वाद्य यंत्रों में ढोलक, मंजीरा, झींका, रमतुला, नगड़िया है। नर्तकों के दल में 15 से 25 लोग होते हैं। नृत्य को लेकर मान्यता है कि इसकी शुरूआत चंदेल कल में हुई थी, दूसरी मानता है कि भगवान कृष्ण ने आसुरी शक्तियों का वध किया था। इस खुशी में ग्वालो ने हाथों में लाठियां लेकर नृत्य किया था।