सतरंगी रंगों से दुर्भाग्य भगायें

- डी.एस. परिहार

रंगों की उत्पत्ति अनंत ब्रह्मांड से हुयी है। अनंत ब्रह्मांडों की तरह रंगांे के रूप भी अनंत है। रंग वास्तव मे प्रकाश की किरणों के ही अंग है। पृथ्वी पर दिखने वाले विभिन्न रंग सूर्य आदि ग्रहों पिडों की ही शक्ति तरंगें है, पृथ्वी पर रंग सूर्य और चन्द्रमा व अन्य आकाशीय ग्रहों पिडों तारों आदि के प्रकाश किरणों के साथ आते है। सूर्य चन्द्र व ब्रह्मांण्ड से विभिन्न रंगों की प्रकाश की किरणें दिन-रात पृथ्वी पर आती रहती है। सभी रगों पर पृथ्वी पर आने का समय निश्चित है। जैसे हरा रंग की किरणें सूर्योदय के पूर्व उषाकाल मे आती है। गुलाबी किरणें सूर्यास्त के सन्याकाल मे आती है। इन किरणें के आगमन काल की तालिका नीचे वर्णित है। पश्चात पृथ्वी पर सभी पदार्थ जैसे ठोस द्रव, गैस व शूक्ष्म तरंगें रंगो की ही विभिन्न अवस्थायें है, रंगंों का समावेश सभी पेड़-पौधों, जलचर, नभचर, थलचर, सभी पशु-पक्षियों व जीवित मृत प्राणियों, संत महात्माओं, दृश्य-अदृश्य वस्तुओं, घटनाओं मे, चल-अचल सभी कर्माें, शब्द, भावनाओं, विचारों मे रहता है। शुभ कर्मों, प्रार्थनाओं, साघनाओं, आर्शीवाद, वरदान, पुण्यों, परोपकारों से शरीर व्यक्तित्व में लाभकारी रंगों की उत्पत्ति होती है तथा पाप कर्मों, कुविचारों, बुरी भावनाओं, हिंसा, घृणा, क्रोध, शापों, पापों से दुर्भाग्य, रोग, दुर्घटनाओं, गंभीर समस्याओं, पागलपन, असाघ्य विकलांगता दायक रंगो की उत्पत्ति होती है। अघ्यात्मिक रंग विद्या के अनुसार रंगों के दो प्रमुख भेद है दिन के रंग जिनका आधार सूर्य की किरणें हैं, वेद मे जिनकी संख्या एक हजार बताई गई है। दूसरा रात के रंग जिनका आधार चन्द्र किरणों है। रंग चिकित्सा, में कुछ मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य स्थितियों के इलाज के लिए रंग और प्रकाश का उपयोग किया जाता है। प्राचीन मिस्रवासी चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए रंगीन शीशों वाले धूप से भरे कमरों का उपयोग करते थे। 19वीं सदी की शुरूआत में, जोहान वोल्फगैंग वान गोएथे नाम के वैज्ञानिक ने विभिन्न रंगों के मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभावों का पता लगाया। अलग-अलग रंग शरीर के विभिन्न चक्रों (ऊर्जा केंद्रों) से जुड़े होते हैं। चिकित्सा का उद्देश्य इन चक्रों पर विशेष रंगों का प्रयोग करके रंग ऊर्जा प्रवाह को संतुलित करना है, जिसके परिणामस्वरूप जीवन और शारीरिक कल्याण में वृद्धि होती है। लुप्त-गुप्त और प्राच्य रंग विद्या अनुसार कुछ रंग शरीर के चक्रों में असंतुलन करते है। यह शूक्ष्म शरीर, शारीरिक मानसिक रोगों दूषित विचारों भावनाओं को भी ठीक करते है। प्रत्येक रंग शरीर में एक विशेष ऊर्जा केंद्र से जुड़ा होता है, जिसे चक्र के रूप में जाना जाता है। कुछ रंगों के संपर्क में लाकर, हम इन ऊर्जा केंद्रों को संतुलित और मिश्रित कर सकते हैं, जो हमारे दैहिक व मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।

चिकित्सा की दो प्रमुख तकनीकें हैं। पहली किसी विशेष रंग को देखने पर यह शरीर में वांछित प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है, घ्यान या रंग चिकिसा द्वारा दूसरा शरीर के कुछ हिस्सों पर सीधे कुछ रंगों को प्रतिबिंबित करके किया जा सकता है। रत्न चिकित्सा, रंगीन प्रकाश के प्रेक्षण सेवन रंगीन कांच के द्वारा वस्त्रों, पेन्ट करके आदि। गर्म रंगों का उपयोग आमतौर पर उत्तेजक प्रभावों के लिए किया जाता है, जबकि ठंडे रंगों का उपयोग शांत प्रभावों के लिए किया जाता है। 

शुभ रंग:- 

वैसे तो हर रंग लाभकारी व विनाशकारी दोनों है। किसी भी रंग की अधिकता या अति न्यूनता रोग पागलपन अनेक कष्ट व दुर्भाग्यों का जंम देता है। परन्तु पीला नारंगी हरा व नीला रंग आसमानी गुलाबी शुभ व ठंडे होते है। प्रेम वात्सल्य, दया, करूणा, दान, क्षमा, उदारता, परसेवा, उत्सव, शादी, विवाह, संतान, मकान, धन, वाहन, स्वास्थ, शांति, शुभ अवसरों को जंम देते है। जो तनावग्रस्त डिप्रैशन से राहत देते हैं गहरा लाल रंग, चाकलेटी, खाकी, काला गहरा भूरा सिलेटी घूसर रंग गहरा नीला अशुभ होते हें जो नफरत, हिंसा, अहंकार, हत्या, रोग, दुर्घटना, अग्निकांड, आपरेशन, उदासी, अकेलेपन, वियोग, शोक को जन्म देते हैं। बर्हिमुखी जीवन लालिमा प्रधान होता है । अन्र्तमखी जीवन नीलिमा प्रधान होता है 

मौसमी भावात्मक विकार:- 

रंगों में मूड में सुधार करने उत्साह को बढ़ाने और हमारे मूड को बेहतर बनाने की शक्ति होती है। पीले और गुलाबी जैसे चमकीले और जीवंत रंग खुशी की आंतरिक भावनाओं को उत्पन करने के लिए जाने जाते हैं। लाल और पीले जैसे रंग आपकी ऊर्जा को बढ़ाते हैं और अधिक प्रेरित करते हैं। प्रकृति में प्रचुर मात्रा में मिलने वाली हरियाली और पेड़ पौधे शांति देती हैं। शांतिपूर्ण नीले रंग से जो आपके मन को शांत करता है हल्के रंग नरम होते हैं और आपकी आत्मा को शांत करते हैं। जबकि चमकीले पीले रंग की ताजा ऊर्जा आपके मूड को बेहतर बनाती है।  


लाल :-

लाल रंग गर्म होता है। लाल रंग शक्ति ऊर्जा देने या उत्साह देता है आलस या ठंड के कारण सिकुड़े या सूजे जकड़े बंद पड़े शरीर के अंग थकान या उदासी दूर करता है। लाल रंग तनाव, सिरदर्द, अनिद्रा, गर्मी, बी.पी., रक्तस्त्राव, अम्लता, अल्सर, क्रोध, अहंकार, हिंसा को जंन्म देता है। यह एनीमिया छिपे रोग, लकवा, गठिया, जोड़ों का दर्द, कमजोरी, मासिक ना आना, वात पीड़ा, नपुंसकता अति मोटापा मे लाभ देता है। यह नाभि चक्र से जुड़ा है यह जीवन शक्ति और शारीरिक ऊर्जा को बढ़ावा देता है। इसका दिमाग पर जोशीला प्रभाव पड़ता है। यह ध्यान केंद्रित करने और एकाग्रता में मदद कर सकता है। सहनशक्ति बढ़ाता है और सर्कुलेशन को बढ़ावा देता है, संघर्ष उत्तेजना, उग्रता देता है।  

नारंगी:- 

नारंगी रंग आलस, निराशा नाशक, जोश, उत्साह, आत्मविश्वास, साहस और रचनात्मकता वृद्धि देता है। भावनात्मक संतुलन और रचनात्मकता बढाता है। लोगों में खुशी की भावनाएँ व भूख बढाता है। रक्तदोष, कुष्ठ रोग, कब्जनाशक, शीत ज्वर, नजला, छाती मे जलन, अपच, पेट दर्द, मिरगी, फेफड़े के रोगों का नाशक है।

आसमानी:- 

ठंडा, चुम्बकीय गुण युक्त, शांतिदायक आकर्षक, चिंता नाशक, अग्नि मंद करता है। अति प्यास असाघ्य ज्वर, बी.पी, दर्द, चक्कर, मूच्र्छा, गर्मी, अनिद्रा, आग से जलने पर, पेचिश, हैजा, डायरिया, खूनी दस्त, पीलिया, आँख, दर्द, चेचक, पेशाब मे जलन, जरीला कीड़ा काटे, रक्त प्रदर, बाल झड़ना, मुहा होना, दमा मसूड़े फूलना, हाथ पैर फटना, सुजाक स्वप्न दोष मे लाभकारी है।

पीला:- 

पीला रंग सौर चक्र से जुड़ा हुआ है यह पाचक शोधक पेट के रोगांे आंतों, अमाशय के रोग, अपच, नाक, मुख, गुदा से रक्तस्त्राव, कंठमाला, मधुमेह, बहरापन, नजला, हिस्टीरिया, चर्म रोग मे लाभकरी है। यह संयम, आदर्श, पुण्य, परोपकार, आत्मविश्वास, आत्मसम्मान और व्यक्तिगत शक्ति को बढ़ावा देता है। यह दिमाग को उत्तेजित करता है और ध्यान केंद्रित करने में मदद कर सकता है। अधिक खुश और आशावादी बनाता है कर्मठता, तत्पराता, उत्तरदायित्व निर्वाह की भावना, प्रफुल्ल्ता चिंता विहीन, मस्ती भरी जिंदगी । उत्तम भावनाओं का विकास 

हरा:- 

रंग चिकित्सा में हरा रंग हृदय चक्र से जुड़ा है यह शिक्षा की बाधा श्वास चर्म रोग घाव भरने जलन अल्सर पाईल्स जुकाम, खंासी, मिरगी, नेत्र रोग, पागलपन के तेज दौरे, बेहोशी, कोमा से मुक्ति, जहरीले पदार्थों के शरीर मे जमा होने पर लाभकारी है। बुद्धि का विकास, मनोचिकित्सा, योजना बनाने की क्षमता, आत्म विकास की क्षमता, समस्या सुलझाने की क्षमता, तनाव मुक्ति, भावनात्मक संतुलन और आत्म कल्याण को बढ़ावा देता है। इसका दिमाग पर शांतपूर्ण प्रभाव पड़ता है तनाव नाशक है पाचन और श्वसन प्रणाली सुधारता है। जातक ताजगी, स्फूर्ति, स्थिरता, बुद्धिमता, सक्रियता, काम के प्रति गहरी आस्था, गतिशालता, कर्मठता के आधार पर उपर उठता है। एकांतता, एकाकीपन व अन्र्तमुखता नाशक होता है।

नीला:- 

गहरा नीला रंग एण्टसेप्टिक और एंटी बाॅयटिक दर्दनाशक है क्षय रोग मधुमेह जन्य विकारों है तनाव और चिंता से अवसाद और अनिद्रा या अन्य नींद संबधी विकार शांत करता है, स्नेह सौजन्यता, शांति पवित्रता, जैसी प्रवृत्तियां जगाता है। उत्साह शीतलता दायक शांत सौम्य सतगुणी है

इण्डिगो:- 

रंग चिकित्सा में इण्डिगो तीसरे नेत्र चक्र से जुड़ा है और माना जाता है कि यह ज्ञान, धारणा और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देता है। इसका दिमाग पर शांतपूर्ण प्रभाव पड़ता है और यह मानसिक स्पष्टता और ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।

बैंगनी:- 

बैंगनी रंग को अक्सर आध्यात्मिकता और उच्च चेतना से जोड़ा जाता है। शांति और विश्राम की भावनाओं को बढ़ावा दे सकता है। बैंगनी रंग मानसिक स्पष्टता और ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। गर्मी नाशक, दर्दनाशक, अल्सर, गंभीर कोलाईटिस, बी.पी., पाईल्स, रक्तस्त्राव, मूत्रकच्छ, उल्टी, एसिडिटी नाशक, बहूमूत्र, प्रोस्टेटस, सूजन, सिस्ट, टयूमर, यूरिन इन्फैक्शन, कैंसर मे लाभ करता है।  

गुलाबी:- 

गुलाबी रंग अक्सर सेक्स, रोमांस प्रेम, वशीकरण, आकर्षण, भावनात्मक संतुलन, करूणा और दया से परिपूर्ण एकांतता, एकाकीपन व अन्र्तमुखता नाशक होता है। गुलाबी रंग का मन और शरीर पर शांत प्रभाव पड़ता है। यह गर्मी और आराम की भावनाओं को बढ़ावा देता है और यह चिंता और तनाव नाशक होता है। इसका हृदय चक्र पर उपचारात्मक प्रभाव पड़ता है, यह हल्का कुछ उत्तेजनात्मक, पाचक व शीतल होता है गर्भवती महिलाओं, प्रसूति के रोग, सिरदर्द गर्भाशय का दर्द व रोग, मुहासे, मुँह के छाले तथा पति-पत्नी की कलह नाशक है नई आशायें उमंगे, सजृन की भावना बढाता है।

सफेद रंग:- 

शुद्धता और स्वच्छता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यह स्थान और स्पष्टता की भावना पैदा करने की अपनी क्षमता के लिए जाना जाता है । सादगी, सरलता, ईमानदारी, सात्विकता देता है। 

चाकलेटी:- 

गंभीरता, स्थिर बुद्धि, दृढता, चंचनता नाशक, एकता, ईमानदारी सज्जनता दायक है। 

कत्थई:- 

भोग लिप्सा, सैैक्सी लिप्तता, असन्यम ईट ड्रिंक एण्ड मेरी का द्योतक है।

जामुनी:- 

मानसिक अपरिवक्वता, बचकानापन का कच्चेपन का  द्योतक है।

भूरा:- 

तटस्थता निरपेक्ष भाव को बढाता है। 

काला:- 

तमोगुणी, निराशा, शोक दुःख, दुर्भाग्य, रोग, उदासी, एकांतता, बोझिलता देता है।




 

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