ज्योतिष और वास्तु का संबध
- विशेष संवाददाता
वैदिक ज्योतिष एवं प्राच्य विद्या शोध संस्थान अलीगंज, लखनऊ के तत्वाधान मे दिनांक 168 वीं मासिक सेमिनार का आयोजन वाराह वाणी ज्योतिष पत्रिका कार्यालय में किया गया। सेमिनार का विषय ज्योतिष और वास्तु का संबध था। जिसमे डा. डी.एस. परिहार के अलावा ज्योतिष रत्न श्री उदयराज कनौजिया, पं. शिव शंकर त्रिवेदी, प. आनंद एस. त्रिवेदी श्री अनिल कुमार बाजपेई एडवोकेट, प. एस.एस. मिश्रा, प. जे.पी. शर्मा एवं लेक्चरर श्री रंजीत सिंह आदि ज्योतिषियों एवं श्रोताओं ने भाग लिया पं. आनंद एस. त्रिवेदी ने गोष्ठी मे बताया कि मकान का दक्षिणी-पूर्वी कोण अग्नि का स्थान होता है। इस स्थान पर रसोई का होना बहुत शुभ फल देता है। मकान का मुख्य द्वार कभी दक्षिण दिशा मे नही रखना चाहिये यह दुर्घटना आपरेशन कलह मुकदमे आदि अनेक अशुभ परिणाम देता है। वास्तु उपचारों मे पौैैैैैघरोपण को भी अपनाना चाहिये केला, आम, तुलसी, मदार के पेड़ पौघे कई वास्तु दोषों का नाश करते है।
श्री कनौजिया ने अपने व्यक्तव्य मे बताया के वेद, वराह संहिता मुहर्त के ग्रन्थों वास्तु माला आदि ग्रन्थों मे वास्तु का वर्णन मिलता है। वास्तु के अनुसार मकान ऐसा होना चाहिये कि दूर से देखने ही अच्छा लगे। तृण मट्टी, ईट-पत्थर का मकान उत्तरोतर गुणवान होता है। पुराने जमाने मे मकान बनाते समय अध्यात्मिक उर्जा के अवागमन का ध्यान रखा जाता था। पौराणिक काल मे वास्तु की उत्तरापदी शाखा के आचार्य विश्वकर्मा थे ओर दक्षिण पदी के आचार्य कश्यप। मनुष्य को अपनी लग्न के अनुसार ही मकान बनवाना चाहिये निजी उपयोग मे मकान रखना हो तो उसे स्थिर लग्न मे बनाना चाहिये, यदि बेचने हेतु बनवाना हो तो मकान चर लग्न मे बनवायें। पुष्य नक्षत्र मे मकान ना बनवायें जो मंद गति कारक शनि का नक्षत्र है। अन्यथा मकान बनवाने मे बहुत ही अधिक समय लगेगा यह चन्द्र-शनि का विष योग होता है। डी.एस. परिहार ने कहा, वास्तु ज्योतिष ग्रह ज्योतिष का ही एक अंश है जिसका आधार इंसान के खुद कर्म ही है। जातक अपने गत जंमों के कर्मो के अनुसार की विशेष शुभता या दोष पूर्ण वास्तु वाला मकान दुकान फैक्ट्री आदि की प्राप्ति करता है। संसार मे इंसान गत जन्म मे जिस ग्रह के व्यक्ति वस्तु स्थान के प्रति शुभ या अशुभ कर्म करता है। इस जन्म मे उसके मकान या दुकान का उस व्यक्ति या वस्तु के कारक ग्रह का हिस्सा शुभ या अशुभ होता है। मकान के विभिन्न भाग पंच तत्वों, विभिन्न ग्रहों व राशियों के प्रतीक होते है। मकान के जिस हिस्से मे वास्तु दोष होता है वह ग्रह कण्डली मे खराब या अशुभ होता है जिसके कारण उस ग्रह का रिश्तेदार जीवन में कष्ट व दुर्भाग्य भोगता है। मकान के विभिन्न भागों तथा दिशाओं मे पंच तत्वों, नवग्रहों और 12 राशियों की स्थिति होती है।
पूर्वी ईशान - मेष, पच्छिम उत्तर- वृष दक्षिण पच्छिम-मिथुन,
उत्तरी ईशान-कर्क, पूर्व दिशा -सिंह, उत्तर दिशा -कन्या
पच्छिमी नैकृत्य-तुला, दक्षिण दिशा-वृश्चिक। ब्रह्मस्थान/मध्य भाग- धनु, पूर्वी आग्नेय-मकर पच्छिम दिशा-कुंभ, पच्छिमी वायव्य-मीन।
नवग्रह- पूर्व दिशा सूर्य उत्तर पच्छिम वायव्य-चन्द्र दक्षिण-मंगल उत्तर बुध उत्तर पूर्व-गुरू दक्षिण पूर्व -शुक्र पच्छिम शनि नैकृत्य-राहू, उत्तर पूर्व केतु।
पंच तत्व ग्रह और दिशायें:-
दक्षिण पच्छिम -बुध, पृथ्वी तत्व, उत्तर पूर्व-जल चन्द्र, दक्षिण पूर्व-अग्नि, मंगल शुक्र उत्तर पच्छिम- वायु की शनि, ब्रह्मस्थान/मध्य भाग-आकाश- गुरू राहू।
मकान के कुछ भाग परिवार के भिन्न-भिन्न सदस्यों के भाग्य को बताते है। सूर्य से पिता व पुत्र चन्द्र्र्र्र्र्र्रमा से माता बूढी स्त्री, नवजात या छोटे शिशु तृतीय संतान बताये। मंगल से भाई साला देवर बुध छोटे बालक बालिका किशोरों किशोरियों गुरू- खुद जातक पुरूष संतान विशेषतः ज्येष्ठ पुत्र। शुक्र से महिला जातक पुत्री दूसरी छोटी बहन पुत्र वधु या कोई युवती बच्चो का भाग्य पुरूष संतान व द्वितीय संतान शनि पुरूष संतान नौकर राहू बाबा ज्येष्ठ पुत्र संतान व द्वितीय संतान मुस्लिम:-
मकान के हिस्से और कारक ग्रह
सूर्य-दांयी ओर की खिड़की सूर्य मकान का दांया भाग, बांयी ओर का शयनकक्ष सूर्य। चन्द्र-मुख्य दरवाजे की बांयी ओर की खिड़की चन्द्र पानी की टंकी, जल संग्रह चन्द्र मकान का बांया भाग बाथरूम, दांयी ओर का शयनकक्ष, स्नानगार पानी की टंकी नल गौशाला कूली एसी कुंआ, नाली, गंदी नाली, बहता पानी। मंगल- बिजली का कनैक्शन, मीटर, किचिन, पत्थर, टाइल्स, खंभे, रसोई की चिमनी, बीम, तिराहा, बुध,- ड्राईंग रूम, बगीचा, बाग लाॅबी, अतिथि कक्ष, मेन हाल, बरामदा बाउन्ड्री दीवारें, प्लास्तर अध्ययन कक्ष बालकनी, टेरेस, बुध, पेरामेट। गुरू-पूजाधर मंदिर, पूजा कक्ष शुक्र-बेडरूम तिजौरी, फूलों का गार्डन कपड़ों की अलमारी श्रंगार कक्ष रसोई। शनि- कबाड़ रूम प्रवेश द्वार की पहली सीढी, डाॅयनिंग रूम, डायनिंग टेबुल, अन्न भंडार, डायनिंग हाॅल लौह सामान, चक्की, स्लोप मार्ग, गंदी नाली, कूड़ा स्थल प्रवेश द्वार की बीम स्टोर रूम, दुछत्ती,
राहू- मुख्य दरवाजा कबाड़ घर सूखा पेड़, अंधेरा भाग चैराहा, क्षतिग्रस्त भाग व राहू टूटी दीवारें, टूटा प्लास्तर राहू टूटे फ्रेम शौचालय घर के सामने की सड़क रंग या पुताई का उड़ जाना सड़कें, खाली उजाड़ भूमि नाला शमशान बड़े सूखे गढ्ढे, गुफा, संुरगे, पहिये राहू पोर्टिकोे लिफट, झूला मकान का कंपाउड। केतु- गली खंभे लंबे पतले पेड़, नारियल का वृक्ष, सीढी, गैलरी, गली, मूत्र घर पिछला दरवाजा, छत, रोशनदान, छज्जा, नाली। वास्तु शास्त्र मे जिस ग्रह की जो दिशा निर्घारित कीगई है। यदि उस दिशा मे उसी ग्रह से संबधित मकान के अंग स्थित है। तो सौभाग्य सुख संपदा स्वास्थ की प्राप्ति होती है। जैसे दक्षिण पूर्व आग्नेय कोण- स्त्री कारक ग्रह शुक्र का स्थान है। यदि इस दिशा मे अग्नि संबधी वस्तुयें है। बिजली का कनैक्शन, मीटर, किचिन, पत्थर, टाइल्स, खंभे, या शुक्र के अंग बेडरूम तिजोरी, फूलों का गार्डन कपड़ों की अलमारी श्रंगार कक्ष तो घर की स्त्रियों तथा ग्रह स्वामी को धन स्वास्थ प्रतिष्ठा प्रगति प्राप्त होगी पर यदि किसी दिशा मे किसी ग्रह के शत्रु ग्रह से संबधित भाग स्थित है। तो दुर्भाग्य, रोग, असफलता, धनहानि, पतन, संतान हानि अशिक्षा दुर्घटना हत्या आत्महत्या जैसी घटनायें घटित होती है। जैसे उत्तर दिशा व्यापार शिक्षा कारक ग्रह बुध की है। यदि घर मे उत्तर दिशा मे बुध के शत्रु ग्रह मंगल के अंग स्थित है। जैसे बिजली का कनैक्शन, मीटर, किचिन, पत्थर, टाइल्स, खंभे, मंगल, रसोई की चिमनी, बीम, तिराहा शिक्षा व्यापार मे हानि होगी।