सनातन परंपराओं को शिक्षा के साथ जोड़ने की आवश्यकता: प्रोफेसर संजय द्विवेदी

महाकुंभ में विज्ञान अध्यात्म और परंपरा विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में अनेकों शोध पत्र प्रस्तुत हुए

- राजेन्द्र कुमार

बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी में महाकुंभ में विज्ञान अध्यात्म और परंपरा विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह के मुख्य अतिथि भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी ने कहा, वसुंधरा को माता व नदियों को पूजने की परंपरा हमारे ऋषियों द्वारा की गई। उन्होंने कहा, विश्व में धरती के आकार को लेकर लोग अलग-अलग मत व्यक्त कर रहे थे तब हमारे यहां इसके लिए भूगोल शब्द दिया गया। इससे ज्ञात होता है कि भारतीय सनातन ज्ञान और विज्ञान एक दूसरे के पूरक है। हिन्दुस्तानियों के हृदय में आत्मीयता, मानवता, इंसानियत होना चाहिए। कहा, हमारे पूर्वजों ने संस्कृति को जन्म देकर संपूर्ण विश्व को एक जैविक प्रयोगशाला में परिवर्तित कर दिया, जहां मानव शरीर की ही परीक्षण का साधन बन गया। वहीं भारत ने कुंभ संस्कृति के माध्यम से श्रद्धा, परंपरा और आध्यात्मिक ऊर्जा को पुनर्जीवित किया। मनुष्य को लोकमंगल, सबके मंगल का विचार रखना होगा। उन्होंने कहा, संगम में बिना भेदभाव, जातिवाद, के श्रद्धालु भक्ति भाव से स्नान कर रहे हैं। गंगा के प्रति भाव, जुड़ाव देखने को मिला। संबोधन में कहा, हिंदुस्तान कभी अंग्रेजों का गुलाम नहीं रहा, वह अपनी रक्षा, आजादी के लिए लगातार संघर्ष करता रहा है।

संगोष्ठी के समापन समारोह की अध्यक्षता कर रहे कुलसचिव  विनय सिंह  कहा, भारत की सनातन संस्कृति अनंत महासागर के समान है, जिसकी हर लहर में समरसता की गूंज है और हर ज्वार में वसुधैव कुटुंबम्क की स्पंदनशील तरंगें। यह केवल एक सांस्कृतिक अवधारणा नहीं, अपितु मानवीय चेतना की वह पराकाष्ठा है, जहां विचारों का उद्भव सर्वजन हिताय के निमित्त होता है। कर्म का प्रवाह सर्वजन सुखाय की ओर अग्रसर रहता है। भारत ने अपने आध्यात्मिक चेतना स्त्रोत से निःस्वार्थ सेवा, दानशीलता और सह-अस्तित्व की भावना का प्रवाह किया।  कहा कि 63 हजार श्रद्धालु परिवार सहित अमृत स्नान कर चुके हैं। 

सभी का नियंत्रण जस का तस है। महाकुंभ ज्ञान, संस्कृति की त्रिवेणी है। अपने  महापुरूषों की वारासत को आज भी बड़ी सुंदरता से संजोया जा रहा है। गंगा मईया का प्रताप बताया। प्रयागराज में बह रही अध्यात्म की त्रिवेणी में देश विदेश के श्रद्धालु डुबकी लगा रहे हैं।

इसके पूर्व विभिन्न क्षेत्रों में शोधार्थीयों ने विषय से संबंधित शोध पत्र प्रस्तुत किये। संचालन डाक्टर गुरदीप त्रिपाठी ने किया। संगोष्ठी के संयोजक डा. प्रकाश चंद्र एवं सह संयोजक डाक्टर गौरी खानवलकर एवं संगोष्ठी के आर्गेनाइजिंग सेक्रेट्री डाक्टर कमलेश बिलगौया, डा. आनंद त्रिवेदी, डा. चित्र गुप्ता, डा. विजय कुमार यादव, डा. शुभांगी निगम, डा. प्रेम प्रकाश सिंह डा. रेखा लगारखा, डा. अंजु सिंह डाक्टर धीरेंद्र शर्मा, डा बी.एस. भदौरिया, डाक्टर संतोष पांडे, मिश्रा, डाक्टर संतोष पांडे आदि उपस्थित रहे।



 

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