इच्छा और पुनर्जन्म, अश्विनीजी गुरूजी, ध्यान आश्रम
- विजय वर्मा
आप क्या हैं ये आपकी इच्छा निर्धारित करती है। अपनी इच्छाओं के अनुसार आप शरीर धारण करते हैं। यहाँ शरीर का मतलब वह नहीं है जो आप दर्पण में देखते हैं, बल्कि पाँच कोश:-
अन्नमय
प्राणमय
मनोमय
विज्ञानमय
आनंदमय
आत्मा तब तक शरीर में रहती है जब तक उसमें प्राण है। मृत्यु वह अवस्था है जब शरीर में प्राण नहीं बचते और इसलिए आत्मा शरीर छोड़ देती है।
परंपरागत रूप से, जब किसी अपराधी को फांसी पर लटकाया जाता था, तो उसे फांसी से उतारने के बाद जल्लाद उसके पैरों के तलवे पर चीरे लगाता था। कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है?
जब किसी को फांसी दी जाती है, तो उसका सारा प्राण नीचे की ओर चला जाता है। चीरे लगाने से यह सुनिश्चित होता था कि शरीर में कोई प्राण न बचे, ताकि आत्मा बाहर निकल सके। ध्यान आश्रम में ऐसे कई लोग हैं जो मृत्यु के करीब पहुँच चुके हैं। हीलर्स उन्हें पुनर्जीवित करने में सक्षम थे, क्योंकि शरीर में कुछ प्राण बचे थे और आत्मा ने उस प्राण में शरण ली। फिर हीलर्स प्राणयुक्त शरीर को फिर से भर देते थे और व्यक्ति को फिर से स्वस्थ कर देते थे। लेकिन एक बार आत्मा शरीर से निकल गई, तो उसे वापस नहीं लाया जा सकता।
आत्मा भले ही शरीर छोड़ दे, लेकिन वह अभी भी अपनी इच्छाओं और कर्मों से बंधी हुई है। 1943 में बंगाल में पड़े अकाल में भोजन की कमी के कारण 30 लाख लोग मारे गए थे। उस समय लोगों ने रसोई में बर्तनों के रहस्यमय ढंग से खड़खड़ाने की बात कही थी। बर्तनों के खड़खड़ाने का कारण क्या था? यह मरने वालों की भूखी आत्माएँ थीं, भोजन की उनकी इच्छा इतनी प्रबल थी कि शरीर छोड़ते ही वे उन बर्तनों में शरण ले ली थी।
सिकंदर ने अपने सेनापति से कहा था कि उसकी मृत्यु के समय ताबूत से उसके खाली हाथ बाहर लटकाए जाएँ ताकि दुनिया देख सके कि आप खाली हाथ आते हैं और खाली हाथ ही चले जाते हैं। आप वैदिक ऋषियों को ऐसा कहते हुए नहीं पाएंगे, वे जानते थे कि आप अपने साथ अपनी इच्छाएँ और कर्म लेकर जाते हैं, और वे आपके अगले जन्म और शरीर का निर्धारण करते हैं। इसलिए यदि आपने जीवन भर देखभाल की इच्छा की है, तो अपने अगले जन्म में आप इंग्लैंड की रानी हो सकते हैं, लेकिन आप चिहुआहुआ भी हो सकते हैं।
अश्विनीजी गुरूजी ध्यान आश्रम के मार्गदर्शक हैं:-
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