स्वाध्याय से विचार शक्ति बढ़ती है
साधना को आगे बढ़ाने के लिए स्वाध्याय महत्वपूर्ण सोपान है। स्वाध्याय के समान कोई तप नहीं है, लेकिन अध्ययन के बाद उसकी गहराई में जाना भी आवश्यक है। स्वाध्याय का अर्थ लोग किताब पढ़ना समझते हैं। पुस्तक पढ़ना तो स्वाध्याय का आरम्भिक स्तर मात्र है। स्वयं का अध्ययन करना ही विशुद्ध रूप से स्वाध्याय है। जो व्यक्ति स्वयं का अध्ययन करता है तो उसे कई कमियाँ अपने अंदर दिखाई देती है। स्वयं के अध्ययन करने से क्या लाभ होता है? जो व्यक्ति स्वयं का अध््ययन करते हैं उन्हें स्वरूप की उपलब्धि होती है। आत्मा की सबसे बड़ी खुराक स्वाध्याय ही है। मनुष्य का जन्म लाखों योनियों में पीड़ा भोगने के बाद हुए किसी पुण्य के प्रताप से होता है। स्वाध्याय बहुत ही मूल्यवान है। सदग्रन्थ हमें सत्संग का लाभ प्रदान करते हैं। जहाँ लाभ है वहाँ ही लाभ का उल्टा 'भला' है। इसलिए स्वाध्याय का प्रारम्भ सदग्रन्थों के अध्ययन से ही करना चाहिए। ये सदग्रन्थ अपनी संगति से ही हमें निखार कर सोने से कुन्दन बना डालते हैं। हम सदग्रन्थों में यदि उच्च विचारों के महापुरुषों के जीवन चरित्र, उनके कार्य और व्यक्तित्व का अवलोकन करते हैं, उनके विचारो...