वेदान्त दर्शन के अस्तित्व
वेदान्त दर्शन में अस्तित्व को ब्रह्म कहते हैं। पर वेदान्ती ब्रह्म के स्वरूप पर एकमत नही हैं। वेदान्त दर्शन के आधार ग्रन्थ प्रस्थान त्रयी है। उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और गीता को मिलाकर प्रस्थानत्रयी कहाजाता है। पर इन्ही ग्रन्थो को आधार बनाकर आचार्यों ने अनेक मत मतान्तर खड़ेकर दिये हैं। इन्ही ग्रन्थो पर आचार्य शंकर का अद्वैतवाद, रामानुज का विशिष्टाद्वैतवाद, निम्बार्क का द्वैताद्वैतवाद ,माध्व का द्वैतवाद और वल्ल्भ का शुद्धाद्वैत वाद खड़ा है। लेक्न इन वादों में आचार्य शंकर का अ्द्वैतवाद अधिक विज्ञान संगत है। तो मैं अस्तित्व या ब्रह्म की व्याख्या अद्वैत मतानुसार ही करूँगा। तैत्तरीय उपनिषद में ब्रह्म को सत्यं ज्ञानमनन्तम् कहा गया है। अर्थात, ब्रह्म सत्य, ज्ञान और अनन्त है। सत्य, यहाँ सत्य का अर्थ वाचिक सत्य से न होकर आत्यन्तिक सत्य से है। सत्य को व्याख्यायित करते हुये गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतरू,ष् अर्थात असद् का किसी भी काल में भाव या अस्तित्व नही होता है और सद् का किसी भी काल में अभाव नही होता है। सत् वह है जिसका आदि, मध्य और अंत न हो, जो अनन्त हो, जो